ऐसे दें दीवाली की शुभकामनाएं
Sarita|October Second 2022
दीवाली मौका होता है पुराने गिले शिकवे मिटाने का, रिश्तेदारी और दोस्ती मजबूत करने का. ऐसे में फोन में घुस कर पूरा दिन घर की चारदीवारी में बैठने से बढ़िया मेलमिलाप किया जाए, क्योंकि त्योहार के बाद यही आप की यादें बनेंगी.
भारत भूषण
ऐसे दें दीवाली की शुभकामनाएं

सोशल मीडिया ने लोगों को न केवल निकम्मा बल्कि अव्वल दर्जे का चालाक भी बना दिया है. यह बात जिन खास मौकों पर उजागर होती है, दीवाली का त्योहर उन में से एक है. सब से बड़े इस सामाजिक त्योहार पर मिलनामिलाना स्मार्टफोन की स्क्रीन तक सिमट कर रह जाना बताता है कि हम कितने इंट्रोवर्ट और खुदगर्ज भी हो गए हैं। और फिर खुद ही रोना, वह भी सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी पोस्टों के जरिए, रोते हैं कि फेसबुक पर उस के 3 हजार फ्रैंड थे लेकिन जब ऐक्सिडेंट में घायल हो कर अस्पताल में भरती हुआ तो देखने या मिजाजपुर्सी के लिए 3 लोग भी न आए.

जाहिर है कि हम एक आभासी और बनावटी दुनिया में जीने के आदी हो गए हैं. त्योहारों के माने यही थे कि हम वास्तविक समाज में जिएं. सुखदुख में साथ देने वालों के सुखदुख में शामिल हों पर अब हम न दुख में किसी के साथ हैं और न सुख में इस बात की हकीकत यह भी है कि सुखदुख में हमारे साथ भी कोई नहीं है. यह एक बड़ी नुकसानदेह बात भावनाओं और समाज के लिहाज से है जिस का अंदाजा मिलनेजुलने के मौकों पर होता है जिसे हम स्क्रीन से ढकने की नाकाम कोशिश में खुद को और औरों को धोखा देने में माहिर होते जा रहे हैं.

एक दौर था जब दीवाली की शुभकामनाएं लोग घरघर जा कर देते थे, मिठाई खातेखिलाते थे, नाश्ता करते थे, छोटेबड़ों का आशीर्वाद लेते थे और बराबरी वाले आपस में गले मिल कर शुभकामनाओं का आदानप्रदान करते थे और ये वाकई हार्दिक होती थीं, कोई मिलावट उन में नहीं होती थी.

यह ठीक है कि वक्त गुजरते लोग व्यस्त होते गए. बढ़ते शहरीकरण और एकल होते परिवारों ने दूरियां पैदा कीं पर उन की भरपाई ग्रीटिंग कार्ड्स की आत्मीयता से होने लगी लेकिन तब भी रूबरू मिलने का रिवाज पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था. लोग अपने शहर के अपने वालों से मिलना ही दीवाली की सार्थकता समझते थे. अब आज के डिजिटल दौर ने आत्मीयता, भाईचारा, संवेदनाएं, भावनाएं और शुभकामनाएं जैसे निगल ली हैं.

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