![दवा एक्सपायरी डेट की रखें जानकारी दवा एक्सपायरी डेट की रखें जानकारी](https://cdn.magzter.com/1338812051/1698905623/articles/K8XfrrCg91699437231969/1699437420944.jpg)
दवा की दुकान या डाक्टर से जो दवा मिलती है उस के पैकेट पर सारी डिटेल लिखी होती है, जैसे, शीशी या इंजैक्शन पर दवा के नाम और उस में क्या व कितना मिला है, दवा कब बनी है और कब तक इस का प्रयोग किया जा सकता है, दवा की कीमत क्या है, दवा किस बैच नंबर की दवाओं के साथ बनी है आदि लिखा होता है. वैसे तो यह जानकारी बहुत छोटी सी लिखी होती है। पर यह होती बड़े काम की है. इस में सब से जरूरी जानकारी होती है कि दवा की एक्सपायरी यानी दवा का प्रयोग कब तक किया जा सकता है. दवा खाने से पहले यह देख लेना सब से जरूरी होता है.
लखनऊ के मशहूर सर्जन डाक्टर जी सी मक्कड़ कहते हैं, “एक्सपायरी डेट देखने के साथ ही साथ यह भी देखें कि दवा को किस तरह से रखना है. खासकर, इंजैक्शन को सही तरह व सही तापमान में नहीं रखा जाएगा तो वह खराब हो सकता है. वह मरीज को लाभ की जगह नुकसान पहुंचा सकता है."
दवा लेने से पहले उस की एक्सपायरी डेट जरूर चैक कीजिए, कई बार हम दवा को खाने से पहले उस की एक्सपायरी डेट नहीं देखते. हम वह दवा भी खा लेते हैं जिस की एक्सपायरी डेट निकल चुकी होती है. कुछ मसलों में यह खतरनाक हो जाता है. कुछ मामलों में हो सकता है कोई नुकसान न हो. कुछ में कम और कुछ दवाओं के मसले में ज्यादा किस दवा के खाने से कितना नुकसान होगा या नहीं होगा, इस का आकलन डाक्टर को होता है. ऐसे में बिना डाक्टर की जानकारी से कोई दवा का प्रयोग न करें.
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मौन का मूलमंत्र जिंदगी को बनाए आसान
हम बचपन में बोलना तो सीख लेते हैं मगर क्या बोलना है और कितना बोलना है, यह सीखने के लिए पूरी उम्र भी कम पड़ जाती है. मौन रहना आज के दौर में ध्यान केंद्रित करने की तरह ही है.
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सरकार थोप रही मोबाइल
सरकार द्वारा कई स्कीमों को चलाया जा रहा है. बिना एडवांस मोबाइल फोन और इंटरनैट सेवा की इन स्कीमों का फायदा उठाना असंभव है. ऐसा अनावश्यक जोर क्या सही है?
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सास बदली लेकिन नजरिया नहीं
सास और और बहू को एकदूसरे की भूमिका को स्वीकार करना चाहिए. सास पुरानी परंपराओं का पालन करते हुए बहू को सिखा सकती है और बहू नई सोच व नए दृष्टिकोण से घर को बेहतर बना सकती है.
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अमेरिका में भी पनप रहा ब्राह्मण व बनिया गठजोड़
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही अमेरिका में एक नए दौर की शुरुआत हो चुकी है जिसे ले कर हर कोई आशंकित है कि अब लोकतंत्र को हाशिए पर रख धार्मिक एजेंडे पर अमल होगा.
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किस संतान को मिले संपत्ति पर ज्यादा हक
यह वह दौर हैं जब पेरैंट्स की सेवा न करने वाली संतानों की अदालतें तक खिंचाई कर रही हैं लेकिन मांबाप की दिल से सेवा करने वाली संतान के लिए जायदाद में ज्यादा हिस्सा देने पर वे भी अचकचा जाती हैं क्योंकि कानून में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है. क्या यह ज्यादती नहीं?
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युवाओं के सपनों के घर पर डाका
नौकरीपेशा होम लोन ले कर अपने सपनों का आशियाना खरीद लेते हैं. लेकिन यहां समस्या तब आती है जब किसी यूइत में वे लोन नहीं चुका पाते. ऐसे में कई बार उन्हें अपने घर से हाथ धोना पड़ता है.
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मेलजोल के अवसर बुफे पार्टी
बूफे पार्टी में मेहमान भोजन और अच्छे समय का आनंद लेने के साथसाथ सोशल गैदरिंग के चलन को भी जीवित रखते हैं. यह अवसर न केवल खानपान के लिए होता है बल्कि यह लोगों के बीच बातचीत, हंसीमजाक और आपसी विचारों के आदानप्रदान का एक साधन भी है.
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अल्लू अर्जुन को जेल भगवान दोषमुक्त
एक तरह के हादसे पर कानून दो तरह से कैसे काम कर सकता है? क्या यह न्याय और संविधान दोनों का अपमान नहीं ?
![ऊंचे ओहदे वालों में अकड़ क्यों ऊंचे ओहदे वालों में अकड़ क्यों](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/871/1971251/jsAA7PQtH1737712505485/1737712993859.jpg)
ऊंचे ओहदे वालों में अकड़ क्यों
कुछ लोगों में अपने रुतबे को ले कर अहंकार होता है. उन्हें लगता है कि उन का ओहदा, उन का पद बैस्ट है. वे सुपीरियर हैं. यह सोच अहंकार और ईगो लाती है जो इंसान के व्यवहार में अड़चन डालती है.
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बंटोगे तो कटोगे वाला नारा प्रधान राष्ट्र
देश नारा प्रधान है. काम भले कुछ न हो रहा हो पर पार्टियां और सरकारों द्वारा उछाले नारों की खुमारी जनता पर खूब छाई रहती है.