केंद्रीय गृहमंत्रालय ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 यानी सीएए के लिए अधिसूचना जारी कर दी है. इस के साथ ही सीएए कानून देशभर में लागू हो गया है. केंद्र सरकार की मानें तो इस से पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान देशों से आए गैरमुसलिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है. तो क्या बाहरी लोगों को नागरिकता दे कर बीजेपी के कट्टर पाखंडी सोच वाले बैंक में कुछ इजाफा होगा? निःसंदेह.
माना जा रहा है कि इस कानून के लागू होने से बंगलादेश से आए कुछ जातियों के हिंदू शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी. बंगलादेश से लगी अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास के जिलों में इन समूहों का जबरदस्त बसाव है.
देश का बंटवारा होने और बाद के वर्षों में बंगलादेश से आ कर बंगाल के सीमाई इलाकों में बसे मतुआ समुदाय की आबादी राज्य की आबादी की 10 से 20 फीसदी है. राज्य के दक्षिणी हिस्से की 5 लोकसभा सीटों में उन की खासी आबादी है, जहां से 2 सीटों - गोगांव और रानाघाट पर 2019 में भाजपा को जीत हासिल हुई थी. 2019 के चुनाव से ऐन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने मतुआ समुदाय के लोगों के बीच पहुंच कर उन्हें संबोधित किया था. अगर उन के वोटों का कोई मतलब है तो वे पहले से ही नागरिक होंगे. उन्हें अब नए संशोधन से नागरिकता के लिए आवेदन करने की जरूरत ही नहीं है.
इसी तरह उत्तरी बंगाल के जिस इलाके में राजवंशी और नामशूद्र की आबादी का बसाव है, वहां भी भाजपा ने 2019 में 3 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जलपाईगुड़ी, कूचविहार और बालुरघाट संसदीय सीटों के इलाकों में इन हिंदू शरणार्थियों की आबादी 40 लाख से ऊपर है. से वोट दे सकते हैं तो पहले से ही नागरिक हैं.
राज्य के दक्षिणी क्षेत्र में करीब 30-35 विधानसभा क्षेत्रों में मतुआ समुदाय की आबादी 40 फीसदी के करीब है. ये विधानसभा इलाके 5 से 6 लोकसभा क्षेत्रों के तहत आते हैं. यानी, इतनी सीटों पर मतुआ समुदाय हारजीत का आंकड़ा तय कर सकता है. इन को भारतीय नागरिकता मिलने पर निःसंदेह इन का वोट बीजेपी की झोली में जाएगा. फिलहाल 2024 में तो उन का वोट मिलेगा नहीं.
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