चुनावी माहौल का कुछ लोग जम कर लुत्फ भी उठा रहे हैं. उन्हें समझ आ गया है कि जब तुक की कोई बात होनी ही नहीं है तो क्यों न अपन भी बहती गंगा में हाथ धोते अपने उसूलों व लैवल की बेतुकी बातें करें. यह और बात है कि ऐसे लोगों को विधर्मी, नास्तिक, अर्बन नक्सली और वामपंथी करार दे कर धकिया दिया जाता है.
इधर गौर करने लायक एक और बात यह भी है कि ब्रैंडेड कथावाचक बागेश्वर बाबा, देवकीनंदन खत्री, मोरारी बापू और तो और कुमार विश्वास तक भी अघोषित और अनिश्चितकालीन अवकाश पर हैं. वे अपने एयरकंडीशंड आश्रमों में गरमी गुजार रहे हैं कि कब नेताओं की कथा खत्म हो तो वे अपनी दुकान खोलें. वैसे भी, ये लोग सालभर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष भाजपा के लिए ही वोट मांगते रहे हैं. अब जिस को वोट चाहिए वह राष्ट्रीय चौमासा कर रहा है. कहीं भी बड़ी धार्मिक रामकथा नहीं हो रही है क्योंकि देशभर में राजनीतिक रामकथा बांची जा रही हो तो इन छुट भइयों की जरूरत भी नहीं. इतना तो इन्होंने भी राम नाम की कृपा से जमा कर रखा है कि सात पुश्तें बिना हाथपांव हिलाए इत्मीनान से बैठ कर खा लें.
भाजपा के लिए चुनाव, चुनाव कम राम नाम को भुनाने का कर्मकांड ज्यादा है. इस के गवाह उस के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण, एजेंडा और ट्वीट भी हैं. आइए कुछ का सेवन करते हैं. रामनवमी को तो उन्होंने 'ट्वीट नवमी' की तरह मनाते ट्वीट पर ट्वीट किए जो देश के प्रधानमंत्री की हैसियत से हैं या एक आम भक्त के, यह कहना मुश्किल है.
• एक तरफ इकबाल अंसारी हैं जिन्होंने अयोध्या के राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण खुशीखुशी स्वीकार किया तो दूसरी तरफ कांग्रेस और इंडी गठबंधन है जिस ने वोटबैंक के चलते इसे ठुकरा दिया.
• जीवनभर हिंदुओं के खिलाफ रहने वाले अंसारी परिवार तक ने श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा का आमंत्रण स्वीकार किया लेकिन कांग्रेस ने ठुकरा दिया.
• कांग्रेस ने वर्षों तक रामलला को टैंट में बैठा कर रखा, राम मंदिर के फैसले को लटका कर रखा.
• 500 साल बाद हमारे रामलला ने अपना जन्मदिन भव्य मंदिर में मनाया.
• कांग्रेस और इंडी गठबंधन वाले हमारी आस्था का अपमान करने में जुटे हैं.
• ये लोग कहते हैं कि हमारा सनातन डेंगू मलेरिया है.
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"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
'एफआईआर', 'भाभीजी घर पर हैं', 'हप्पू की उलटन पलटन' जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.
पतिपत्नी के रिश्ते में बदसूरत मोड़ क्यों
पतिपत्नी के रिश्ते के माने अब सिर्फ इतने भर नहीं रह गए हैं कि पति कमाए और पत्नी घर चलाए. अब दोनों को ही कमाना और घर चलाना पड़ रहा है जो सलीके से हंसते खेलते चलता भी है. लेकिन दिक्कत तब खड़ी होती है जब कोई एक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते अनुपयोगी हो कर भार बनने लगता है और अगर वह पति हो तो उस का प्रताड़ित किया जाना शुरू हो जाता है.
शादी से पहले बना लें अपना आशियाना
कपल्स शादी से पहले कई तरह की प्लानिंग करते हैं लेकिन वे अपना अलग आशियाना बनाने के बारे में कोई प्लानिंग नहीं करते जिसका परिणाम कई बार रिश्तों में खटास और अलगाव के रूप में सामने आता है.
ओवरऐक्टिव ब्लैडर और मेनोपौज
बारबार पेशाब करने को मजबूर होना ओवरऐक्टिव ब्लैडर होने का संकेत होता है. यह समस्या पुरुष और महिलाओं दोनों को हो सकती है. महिलाओं में तो ओएबी और मेनोपौज का कुछ संबंध भी होता है.
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सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार है क्योंकि दान और पूजापाठ की व्यवस्था के साथ ही असमानता शुरू हो जाती है जो घर और कार्यस्थल तक बनी रहती है.
एमआरपी का भ्रमजाल
एमआरपी तय करने का कोई कठोर नियम नहीं होता. कंपनियां इसे अपनी मरजी से तय करती हैं और इसे इतना ऊंचा रखती हैं कि खुदरा विक्रेताओं को भी अच्छा मुनाफा मिल सके.
कर्ज लेकर बादामशेक मत पियो
कहीं से कोई पैसा अचानक से मिल जाए या फिर व्यापार में कोई मुनाफा हो तो उन पैसों को घर में खर्चने के बजाय लोन उतारने में खर्च करें, ताकि लोन कुछ कम हो सके और इंट्रैस्ट भी कम देना पड़े.
कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हमला भड़ास या साजिश
कनाडा के हिंदू मंदिरों पर कथित खालिस्तानी हमलों का इतिहास से गहरा नाता है जिसकी जड़ में धर्म और उस का उन्माद है. इस मामले में राजनीति को दोष दे कर पल्ला झाड़ने की कोशिश हकीकत पर परदा डालने की ही साजिश है जो पहले भी कभी इतिहास को बेपरदा होने से कभी रोक नहीं पाई.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
2004 में कांग्रेस नेतृत्व वाली मिलीजुली यूपीए सरकार केंद्र की सत्ता में आई. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने अपने सहयोगियों के साथ संसद से सामाजिक सुधार के कई कानून पारित कराए, जिन का सीधा असर आम जनता पर पड़ा. बेलगाम करप्शन के आरोप यूपीए को 2014 के चुनाव में बुरी तरह ले डूबे.
अमेरिका अब चर्च का शिकंजा
दुनियाभर के देश जिस तेजी से कट्टरपंथियों की गिरफ्त में आ रहे हैं वह उदारवादियों के लिए चिंता की बात है जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे ने और बढ़ा दिया है. डोनाल्ड ट्रंप की जीत दरअसल चर्चों और पादरियों की जीत है जिस की स्क्रिप्ट लंबे समय से लिखी जा रही थी. इसे विस्तार से पढ़िए पड़ताल करती इस रिपोर्ट में.