एक देश, एक चुनाव, एक टैक्स यानी एक ब्रह्म, एक पार्टी, एक नेता...और आखिर में है एक जंजीर
भारत जब अपना संविधान बना रहा था उस समय चर्चा का सब से बड़ा विषय यह था कि देश का संविधान कैसा हो? लंबी बहस के बाद यह तय हुआ कि भारत का संविधान उदार हो. समय, काल और परिस्थितियों की जरूरत के हिसाब से उस में संशोधन हो सकें. यह हुआ भी. संविधान लागू होने के बाद 104 संशोधन उस में हो चुके हैं. संविधान के उदार होने का मतलब यह होता है कि देशहित के लिए विचारविमर्श होता रहना चाहिए.
संविधान के इस सिद्धांत के तराजू में 'एक देश एक चुनाव' को रख कर देखें तो यह संविधान की मूल भावना के एकदम खिलाफ दिखता है. 'एक देश एक चुनाव' असल में 'एक नेता' को सामने रख कर गढ़ा गया सिद्धांत है.
हमारे देश के विधानसभा या लोकसभा चुनाव में जनता सब से पहले विधायक और सांसद चुनती है. इस के बाद सब से बड़े दल के सांसद या विधायक अपना नेता चुनते हैं. मुख्यमंत्री पद के लिए राज्यपाल और प्रधानमंत्री पद के लिए राष्ट्रपति महोदय पद और गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं. इस के बाद मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रिमंडल के नाम तय होते हैं.
हाल के कुछ सालों में प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का चेहरा पहले से चुने जाने का चलन होने लगा है. असल में यह नेता थोपने की बात है. इस में पार्टी एक चेहरा चुन लेती है. इस के बाद सांसद या विधायक केवल औपचारिकता के लिए सदन में पार्टी मीटिंग के दौरान नाम का प्रस्ताव और समर्थन जैसा दिखावा करते हैं.
'एक देश एक चुनाव' भी इसी तरह की औपचारिकता भर रह जाएगी. इस में एक नेता ही अपना चेहरा सामने रखेगा. पूरे देश में उसी के नाम पर चुनाव होगा. भारत विविधता वाला देश है. एक देश एक चुनाव के जरिए इस की खासीयत को खत्म करने का प्रयास हो रहा है.
संविधान संशोधन का अधिकार
भारत के संविधान में संशोधन की प्रक्रिया है. इस तरह के परिवर्तन भारत की संसद के द्वारा किए जाते हैं. इन्हें संसद के प्रत्येक सदन से पर्याप्त बहुमत के द्वारा अनुमोदन प्राप्त होना चाहिए. विशिष्ट संशोधनों को राज्यों द्वारा भी अनुमोदित किया जाना चाहिए.
هذه القصة مأخوذة من طبعة May Second 2024 من Sarita.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك ? تسجيل الدخول
هذه القصة مأخوذة من طبعة May Second 2024 من Sarita.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك? تسجيل الدخول
एक गलती ले डूबी इन ऐक्टर्स को
फिल्म कलाकारों का पूरा कैरियर उन की इमेज पर टिका होता है. दर्शक उन्हें इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें वे अपना आइकन मानने लग जाते हैं मगर जहां रियल लाइफ में इस इमेज पर डैंट पड़ता है वहां वे अपने कैरियर से हाथ धो बैठते हैं.
शादी से पहले खुल कर करें बात
पतिपत्नी में किसी तरह का झगड़ा हो हीन, इस के लिए शादी के बंधन में बंधने से पहले दोनों पार्टनर्स हर विषय पर खुल कर बात करें चाहे अरेंज मैरिज हो रही हो या हो लव मैरिज. वे विषय क्या हैं और बातें कैसे व कहां करें, जानें आप भी.
सुनें दिल की धड़कन
सांस लेने में मुश्किल, छाती में दर्द या बेचैनी महसूस हो, तो फौरन कार्डियोलोजिस्ट से हृदय की जांच करानी चाहिए क्योंकि शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करने से स्थिति गंभीर हो सकती है.
जब ससुर लेता हो बहू का पक्ष
जिन मातापिता के पास सिर्फ बेटे ही होते हैं वे घर में बहू के आने के बाद बहुत खुश होते हैं. बहू में वे बेटी की कमी को पूरा करना चाहते हैं. ऐसे में ससुर के साथ बहू के रिश्ते बहुत अच्छे हो जाते हैं क्योंकि लड़कियां बाप की ज्यादा लाड़ली होती हैं.
डिंक कपल्स जीवन के अंतिम पड़ाव में अकेलेपन की खाई
आजकल शादीशुदा युवाओं की लाइफस्टाइल में डिंक कपल्स का चलन बढ़ गया है. इस में दोनों कमा कर आज में जीते हैं पर बच्चे, परिवार और बिना जिम्मेदारियों के साथ. यह चलन खतरनाक भी हो सकता है.
प्रसाद पर फसाद
प्रसाद में मांसमछली वगैरह की मिलावट की अफवाह के के बाद भी तिरुपति के मंदिर में भक्त लड्डू धड़ल्ले से चढ़ा रहे हैं. इस से जाहिर होता है कि यह आस्था का नहीं बल्कि धार्मिक और राजनीतिक दुकानदारी का मसला है.
आरक्षण के अंदर आरक्षण कितना भयावह?
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण में वर्गीकरण को मंजूरी दे दी है, जिस के तहत सरकारों को अब एससी और एसटी आरक्षण के भीतर भी आरक्षण देने की छूट होगी. इस फैसले ने आरक्षण की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है. इस से जाति आधारित आरक्षण की मांग और भी जटिल हो जाएगी, जिस से देश में नई राजनीतिक बहस शुरू हो सकती है.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्रीय सरकार के कार्यकाल के दौरान बनाए गए कानूनों में 2-3 ने ही सामाजिक परिदृश्य को बदला. राजीव गांधी को सामाजिक मामलों की ज्यादा चिंता नहीं थी, यह साफ है.
सांपसीढ़ी की तरह है धर्म और धर्मनिरपेक्षता की जंग
हरियाणा और जम्मूकश्मीर विधानसभा चुनावों के नतीजे बताते हैं कि धर्म और धर्मनिरपेक्षता के बीच जंग आसान नहीं है. दोनों के बीच सांपसीढ़ी का खेल चलता रहता है.
क्यों फीकी हो रही फिल्मी और आम लोगों की दीवाली
फिल्मों की दीवाली अब पहले जैसी नहीं रही. दीवाली का त्योहार अब बड़े बजट की फिल्मों के लिए कलैक्शन का दिन भी नहीं रहा. इस मौके पर फिल्में आती तो हैं लेकिन बुरी तरह पिट जाती हैं. फिल्मी हस्तियों व आम लोगों के लिए दीवाली फीकी होती जा रही है.