भाग-2
यह है हमारा शिल्पशास्त्र
पिछले अंक में आप ने भूमि की जातियों के बारे में शिल्पशास्त्रम् में क्याक्या गलत था, पढ़ा. अब आगे....
शिल्पशास्त्र ने यदि पहले कृषि विज्ञान की बातों को हथिया कर उन्हें जातियों से जोड़ा है तो आगे वह ज्योतिषी की भूमिका निभाता हुआ दिखाई देता है. जब वह कहता है कि जिस जमीन पर घर बनाना हो, वहां एकसाथ लंबाचौड़ा गड्ढा खोद कर उस में एक दीपक जला दो. यदि दीये की शिखा काला धुआं दे तो वह जमीन भाग्यकारक व संपत्तिकारक होती है; यदि धुआं पूर्व को जाए तो वृद्धिकारक; यदि दक्षिणपूर्व में जाए तो समझो घर को आग लगेगी; यदि दक्षिण में जाए तो घर बनाने वाले की मृत्यु निश्चित है; यदि दक्षिणपश्चिम में जाए तो जीवन में दुख होगा; यदि पश्चिम में जाए तो धन का नाश होगा; यदि पश्चिमउत्तर में जाए तो बीमारी आएगी; उत्तर में जाए तो संपत्ति आएगी तथा यदि उत्तरपूर्व को जाए तो सुख की प्राप्ति होगी.
वास्तोर्मध्ये तु विवरं कृत्वा बाहुप्रमाणत;
दीपं तत्र स्थापयित्वा चिन्तयेत् च फलादिकम्.
श्रीदा दीपशिखा धूम्रा, वृद्धि :
प्राचीगता भवेत्,
आग्नेये वेश्मदाह : स्याद्
याम्ये मृत्युर्न संशय:
नैर्नहते च भवेद् दुख वारुण्ये धननाशनम्.
वायण्ये व्याधिपीडा स्यादूत्तरस्यां च संपद :
ऐशान्ये सुखवृद्धि :
स्यादित्याशाभागनिर्णय : (शिल्पशास्त्रम् 1/13-15)
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