औरों से अलग है पुलिस वालों के बच्चों की जिंदगी
Sarita|July Second 2024
अकसर पुलिस वालों के बच्चे या तो इन्फीरिओरिटी या फिर सुपीरिओरिटी कौंप्लैक्स का शिकार रहते हैं. हालांकि यह समस्या या अवस्था कालेज पहुंचतेपहुंचते दूर हो जाती है लेकिन तब तक इन बच्चों को जो परवरिश चाहिए होती है वह पेरैंट्स, खासतौर से मां, नहीं दे पाते.
भारत भूषण
औरों से अलग है पुलिस वालों के बच्चों की जिंदगी

निर्देशक रमेश सिप्पी की 1982 में आई फिल्म 'शक्ति' इसलिए हिट हुई थी कि उस में बौलीवुड के 2 दिग्गज ऐक्टर दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन पहली बार एकसाथ नजर आए थे लेकिन क्राइम और ऐक्शन प्रधान इस फिल्म की कहानी एक ऐसे आला पुलिस अफसर और उस के बेटे पर केंद्रित थी जो निहायत ही उसूल वाला, सख्त और अनुशासनप्रिय है और इतना है कि अपने इकलौते बेटे को अपराधियों के चंगुल से छुड़ाने वह अपनी ईमानदारी से समझौता नहीं करता.

नन्हा बेटा जिंदगीभर इस हादसे को नहीं भुला पाता और यह मान कर चलता है कि पिता अगर चाहता तो अपराधियों की गिरफ्त से उसे छुड़ा सकता था. ऐसे में उस की जान अपराधियों के ही एक साथी ने बचाई थी. कहानी कुछ ऐसे आगे बढ़ती है कि बड़ा हो कर बेटा इंट्रोवर्ट होता जाता है और फिर स्मगलरों के साथ ही मिल कर गैरकानूनी काम करने लगता है और आखिर में पिता के ही हाथों मारा जाता है.

जरूरी नहीं कि यह या ऐसी ही कोई दूसरी फिल्मी कहानी हर पुलिस वाले की जिंदगी पर लागू होती हुई हो. लेकिन इतना जरूर तय है कि पुलिस वालों के बच्चे आमतौर पर आम बच्चों से कुछ या ज्यादा अलग हट कर ही होते हैं. वे बहुत अच्छे भी हो सकते हैं और बहुत बुरे भी. यह बात उनकी पेरैंटिंग पर निर्भर करती है..

उम्मीद यह की जाती है कि कानून के रखवालों की संतानें जुर्म का रास्ता अख्तियार नहीं करेंगी लेकिन जब किसी पुलिस वाले की संतान ही कानून अपने हाथ में लेती है तो कठघरे में पूरा पुलिस महकमा खड़ा नजर आता है.

هذه القصة مأخوذة من طبعة July Second 2024 من Sarita.

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