गेहूं की रोटी रसोई से क्यों निकालने पर तुले हैं लोग
Sarita|July First 2024
क्या आप ने सोचा है कि आप के घर में काम करने वाली मेड के शरीर पर चरबी क्यों नहीं चढ़ती जबकि वह आप से चारगुना ज्यादा रोटियां खाती है? वह दुबली पतली है क्योंकि वह सारा दिन शारीरिक श्रम करती है जबकि आप खाना खा कर बिस्तर या सोफे पर ही पड़ी रहती हैं.
गेहूं की रोटी रसोई से क्यों निकालने पर तुले हैं लोग

भारत में उगने वाले अनाज में पहला स्थान धान का है जिस से चावल बनता है और दूसरे नंबर पर है गेहूं, जिससे आटा तैयार होता है. भोजन के लिए रोटियां बनाने में गेहूं के आटे का प्रयोग ही सब से ज्यादा होता है. सदियों से गेहूं के आटे की रोटियां हमारे खाने का खास हिस्सा रही हैं. मगर अभी कुछ समय से यह बात सारी दुनिया में फैलाई जा रही है कि गेहूं हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है.

दुनियाभर में लोग गेहूं के आटे से बनी रोटियों से दूर हो रहे हैं. जो भी मोटा हो रहा है उस को पहली सलाह यह दी जा रही है कि गेहूं के आटे की रोटी खाना छोड़ दो. उस की जगह चावल खाओ.

व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी पर तो इस को ले कर तमाम रील्स दिखाई जा रही हैं. कोई कह रहा है कि आटे में उपस्थित ग्लूटेन आंतों में जम कर बीमारियां पैदा करता है तो कोई समझाने की कोशिश कर रहा है कि गेहूं में बहुत अधिक मात्रा में ग्लैडिन पाया जाता है, जो एक प्रोटीन है और भूख बढ़ाने का काम करता है. इस कारण से गेहूं का सेवन करने वाला व्यक्ति एक दिन में अपनी जरूरत से ज्यादा कम से कम 400 कैलोरी अधिक सेवन कर जाता है. इसलिए गेहूं के आटे की रोटी को अपनी रसोई से बाहर कर दें.

अमेरिका के एक हृदय रोग विशेषज्ञ हैं डा. विलियम डेविस उन की एक किताब इन दिनों बड़ी चर्चा में है. 'व्हीट बेली' यानी गेहूं की तोंद, नामक इस किताब में उन्होंने गेहूं से होने वाले शारीरिक नुकसान के बारे में विस्तार से लिखा है. डा. विलियम लिखते हैं कि यदि लोगों को डायबिटीज और हृदय रोगों से मुक्ति चाहिए तो गेहूं छोड़ कर पुराने लोगों की तरह मोटा अनाज यानी ज्वार, बाजरा, रागी, चना, मटर, कोडव, जौ और सावां जैसे अनाजों की रोटी खानी चाहिए.

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