दीवाली को धार्मिक त्योहार मानने की हमारी पुरानी परंपरा है और इस में पूजापाठ से धनधान्य पाने की कल्पना बहुत ज्यादा हावी रहती है. दीवाली असल में अब पूजापाठ, लक्ष्मीपूजन, स्नान, दानदक्षिणा का नहीं, खुशी का अवसर है. दीवाली ऐसा दिन है जिसे भारत के अधिकांश लोग कुछ नए से जोड़ते हैं और इस को इसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए.
दीवाली पर पूजापाठ से क्या लक्ष्मी मिलती है, इस पर अंधविश्वासों में फंसने से पहले कुछ जान लें.
सैकड़ों पौराणिक कथाएं हैं जो पूजापाठ व धनधान्य से जुड़ी हैं. वे सब अतार्किक और चमत्कारों वाली हैं, उन्हीं के चक्कर में लोग इस दिन बहुत सा समय और पैसा ही नहीं खर्च कर डालते, बल्कि बरबाद भी कर देते हैं.
एक कहानी देखिए- एक बार नारद मुनि ने वैकुंठ धाम पहुंच कर विष्णु से कहा कि प्रभु, पृथ्वी पर आप का प्रभाव कम हो रहा है. जो धर्म के रास्ते पर चल रहे हैं उन का भला नहीं हो रहा और जो पाप कर रहे हैं उन का खूब भला हो रहा है. यह सुन कर विष्णु ने कहा कि ऐसा नहीं है देवर्षि, नियति के अनुसार ही सब हो रहा है और वही उचित है. तब नारद ने कहा कि मैं ने स्वयं अपनी आंखों से देखा है. तब विष्णुजी ने कहा कि इस तरह की किसी एक घटना के बारे में बताओ.
तब नारद ने एक घटना का उल्लेख करते हुए बताया कि जब वे जंगल से गुजर रहे थे तब एक गाय दलदल में फंसी हुई थी. कोई उसे बचाने के लिए नहीं आ रहा था. उसी दौरान एक चोर आया. उस ने गाय को बचाया नहीं बल्कि उस पर पैर रख कर दलदल लांघ कर निकल गया.
आगे चल कर उसे सोने की मोहरों से भरी थैली मिली. फिर वहां से एक बूढ़ा साधु गुजरा. उस ने गाय को बचाने की पूरी कोशिश की और बचाने में कामयाब भी हो गया. लेकिन जब गाय को बचा कर वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया. सो, बताइए, यह कौन सा न्याय है.
नारद की बात सुन कर प्रभु ने कहा कि जो चोर गाय पर पैर रख कर भाग गया था उस के भाग्य में तो खजाना था लेकिन उस के पाप के चलते उसे कुछ ही सोने की मोहरें मिलीं.
वहीं उस साधु के भाग्य में मृत्यु लिखी थी लेकिन उस ने गाय की जान बचाई. उस के इस पुण्य के चलते उस की मृत्यु टल गई और वह एक छोटी सी चोट में बदल गई. यही कारण था कि वह गड्ढे में जा गिरा.
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