देशभर के शराबी शराब पीने से पहले शराब में उंगलियां डुबो कर उस की कुछ बूंदें जमीन पर छिड़कते हैं. वे ऐसा क्यों करते हैं, यह उन्हें भी नहीं मालूम. कुछ मदिराप्रेमी श्रुति और स्मृति की बिना पर जो बता पाते हैं उस का सार यही निकलता है कि यह रिवाज सदियों से चला आ रहा है जिस के पीछे मूल भावना तेरा तुझ को अर्पण वाली है. यानी यह एक रूढ़ि है जिस का पालन शराब पीने में भी ईमानदारी से किया जाता है. ऐसा करने से वे सीधे भगवान से जुड़ जाते हैं.
हालांकि देश के कुछ मंदिरों में शराब प्रसाद की शक्ल में भी चढ़ाई जाती है. इन में उज्जैन का काल भैरव और असम का कामख्या देवी का मंदिर प्रमुख हैं जहां शराब का प्रसाद चढ़ाने के साथ भक्त बाकायदा इस प्रसाद को ग्रहण भी करते हैं. कामख्या देवी के मंदिर में तो शाकाहारी के साथ मांसाहारी प्रसाद जैसे मछली और बकरे का मांस चढ़ाए जाने का भी रिवाज है. यानी भगवान का प्रसाद चाहे मांस हो या मदिरा या हों लड्डू, पवित्र मान कर खायापिया जाता है.
इस से किसी सनातनी की भावनाएं आहत नहीं होतीं और न ही किसी को किसी तरह का पाप लगता है. धरती माता को अर्पित की जाने वाली बूंदों की तरह ही प्रसाद का रिवाज है जिस के बारे में मोटे तौर पर लोग यही जानते और मानते हैं कि इस से भगवान प्रसन्न होते हैं और मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
भगवान को अन्न, मिष्ठान्न और धन वगैरह चढ़ाने की रुचि या परंपरा कहां से शुरू हुई और किस ने की, यह किसी को नहीं मालूम लगता ऐसा है कि यह पंडेपुजारियों ने ही शुरू की होगी जिस से उन्हें फोकट में पकवान खाने को मिलते रहें और पैसा बरसता रहे, जिस के लिए वे मंदिर में बैठते हैं.
ओशो यानी रजनीश ने कहा भी है कि अगर भक्त मंदिर में सिर्फ फूल ले कर जाएंगे तो वहां पुजारी भी नहीं टिकेगा. यानी, भक्त श्रुति और स्मृति के आधार पर ही प्रसाद चढ़ाए जा रहे हैं. धर्म की इस भेड़चाल का ही नतीजा है हालिया तिरुपति का प्रसादम विवाद जिस में कथित रूप से लड्डुओं में भैंस की चरबी, मछली का तेल व सूअर की चर्बी वगैरह पाई गईं.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
هذه القصة مأخوذة من طبعة October Second 2024 من Sarita.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك ? تسجيل الدخول
هذه القصة مأخوذة من طبعة October Second 2024 من Sarita.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك? تسجيل الدخول
अच्छा लगता है सिंगल रहना
शादी को ले कर लड़कियों में पुराने रूढ़िगत विचार नहीं रहे. जौब, सैल्फ रिस्पैक्ट, बराबरी ये वे पैमाने हैं जिन्होंने उन्हें देर से शादी करने या नहीं करने के औप्शन दे डाले हैं.
मां के पल्लू से निकलें
पत्नी चाहती है कि उस का पति स्वतंत्र व आत्मनिर्भर हो. ममाज बौयज पति के साथ पत्नी खुद को रिश्ते में अकेला और उपेक्षित महसूस करती है.
साइकोएक्टिव ड्रग्स जैसा धार्मिक अंधविश्वास
एक परिवार सायनाइड खा लेता है, एक महिला अपने लड्डू गोपाल को स्कूल भेजती है, कुछ बच्चे काल्पनिक देवताओं को अपना दोस्त मानते हैं. इन घटनाओं के पीछे छिपा है धार्मिक अंधविश्वास का वह असर जो मानव की सोच व व्यवहार को बुरी तरह प्रभावित करता है.
23 नवंबर के चुनावी नतीजे भाजपा को जीत पर आधी
जून से नवंबर सिर्फ 5 माह में महाराष्ट्र व झारखंड की विधानसभाओं और दूसरे उपचुनावों में चुनावी समीकरण कैसे बदल गया, लोकसभा चुनावों में मुंह लटकाने वाली पार्टी के चेहरे पर मुसकान आ गई लेकिन कुछ काटे चुभे भी.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
क्या कानून हमेशा समाज सुधार का रास्ता दिखाते हैं या कभीकभी सत्ता के इरादों का मुखौटा बन जाते हैं? 2014 से 2024 के बीच बने कानूनों की तह में झांकें तो भारतीय लोकतंत्र की तसवीर कुछ अलग ही नजर आती है.
"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
'एफआईआर', 'भाभीजी घर पर हैं', 'हप्पू की उलटन पलटन' जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.
पतिपत्नी के रिश्ते में बदसूरत मोड़ क्यों
पतिपत्नी के रिश्ते के माने अब सिर्फ इतने भर नहीं रह गए हैं कि पति कमाए और पत्नी घर चलाए. अब दोनों को ही कमाना और घर चलाना पड़ रहा है जो सलीके से हंसते खेलते चलता भी है. लेकिन दिक्कत तब खड़ी होती है जब कोई एक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते अनुपयोगी हो कर भार बनने लगता है और अगर वह पति हो तो उस का प्रताड़ित किया जाना शुरू हो जाता है.
सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार
सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार है क्योंकि दान और पूजापाठ की व्यवस्था के साथ ही असमानता शुरू हो जाती है जो घर और कार्यस्थल तक बनी रहती है.
एमआरपी का भ्रमजाल
एमआरपी तय करने का कोई कठोर नियम नहीं होता. कंपनियां इसे अपनी मरजी से तय करती हैं और इसे इतना ऊंचा रखती हैं कि खुदरा विक्रेताओं को भी अच्छा मुनाफा मिल सके.
कर्ज लेकर बादामशेक मत पियो
कहीं से कोई पैसा अचानक से मिल जाए या फिर व्यापार में कोई मुनाफा हो तो उन पैसों को घर में खर्चने के बजाय लोन उतारने में खर्च करें, ताकि लोन कुछ कम हो सके और इंट्रैस्ट भी कम देना पड़े.