उनके पिता त्रैलोक्यनाथ बसु नराजोल इस्टेट के तहसीलदार थे। कहा जाता है कि जब लक्ष्मीप्रिया देवी को कोई पुत्र न हुआ तो उन्होंने अपने घर के सामने की सिद्धेश्वरी काली मन्दिर में तीन दिनों तक लगातार पूजन किया। तीसरी रात को काली माता ने उन्हें दर्शन देकर पुत्ररत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद तो दिया लेकिन यह भी कहा कि यह पुत्र बहुत यशस्वी तो होगा लेकिन अधिक दिन जीवित नहीं रहेगा। उन दिनों के परम्परा के अनुसार नवजात शिशु का जन्म होने के बाद उसकी सुरक्षा के लिए कोई उसे खरीद लेता था। लक्ष्मीप्रिया देवी के पुत्र के जन्म के बाद उसे तीन मुट्ठी खुदी (चावल) देकर उसकी दीदी ने खरीद लिया जिसके कारण उसका नाम पड़ा - खुदीराम।
बालक खुदीराम को माता-पिता का प्रेम अधिक दिनों तक नहीं मिल सका। मात्र ६ वर्ष की अवस्था में पहले माँ और फिर पिता चल बसे । दीदी अपरूपा देवी का विवाह हो चुका था लेकिन उसे ही नन्हें खुदीराम का दायित्व लेना पड़ा। अब खुदीराम दीदी और उसके परिवार के साथ रहने लगे। दीदी का एक लड़का खुदीराम की ही आयु का था। दोनों साथ ही तमलुक शहर के हेमिल्टन स्कूल में पढ़ने लगे। तब तक खुदीराम १२ वर्ष के हो चुके थे। स्कूल में खुदीराम का अधिक मन नहीं लगता था । वे कुछ विशेष किस्म के किशोर थे। स्कूल में वे एक ऐसे छात्र के रूप में जाने जाते थे जिसे किसी भी तरह के कष्ट को सहन करने की क्षमता थी और जो किसी से भी नहीं डरता था। उनके स्कूली जीवन के बारे में दो तीन कहानियां बहुत प्रसिद्ध हैं जिसके बारे में उन लेखकों ने लिखा है जो उनके साथ स्कूल में पढ़ते थे।
एक बार वे एक ऊँचे पेड़ से जमीन पर कूदे और उन्हें बहुत चोट लगी और कपड़े भी बुरी तरह से फट गए। लेकिन जब उसी समय उनके शिक्षक आ गए तो अपने दुःख और पीड़ा को भीतर ही भीतर पीते हुए खुदीराम ने ऐसा दिखाया मानो उन्हें कुछ हुआ ही न हो। सभी लड़के अवाक! खुदीराम सांप से बिल्कुल ही नहीं डरते थे और कई बार सांप को पकड़कर, थोड़ी देर खेल करके वे उसे छोड़ दिया करते थे। ऐसे साहसी लड़के को उनके साथ पढ़नेवाले लड़के क्यों न सराहते भला?
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष