दिन बदले, समय बदला धीरे-धीरे कब समय के वसंत ऋतु ने पतझड़ का रुख कर लिया, पता ही नहीं चला। जैसे गुड़ की मिठास के कारण उसके आस-पास चीटियों का जमावड़ा हो जाता है, और देखते ही देखते चीटियां उस गुड़ को उसकी मिठास सहित चट कर जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ भारत देश के साथ समय-समय पर होनेवाले बाहरी आक्रमण, लूट-पाठ, अत्याचारों ने भारत की समृद्धि को बिल्कुल नष्ट कर दिया। ईरान, यूनानी, मुगल और ब्रिटिश आदि द्वारा भारत पर किए गए आक्रमणों की एक लम्बी सूची है। जिन्होंने हमारी सांस्कृतिक धरोहरों को हमसे दूर कर दिया। हालांकि ब्रिटिश राज का कहर विश्व के अन्य देशों पर भी बरपा किन्तु यदि एक अकेले भारत की बात की जाए तो अंग्रेजों ने यहाँ पूरे २०० वर्ष तक उनका आधिपत्य कायम रखा। यही कारण है कि भारतीय इतिहास का एक बड़ा हिस्सा अंग्रेजी राज द्वारा किए गए अत्याचारों से भरा पड़ा है। इसकी शुरुआत सन १६०८ से हुई जब अंग्रेज भारत में व्यापार करने की इच्छा से मेरठ शहर द्वारा भारत में आए, और देखते ही देखते सम्पूर्ण भारत को ही अपना सम्राज्य बना लिया।
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष