दूरसंचार क्रान्ति की शुरूआत में निजी क्षेत्र को प्रवेश देने का सिलसिला १६८४ में सबस्क्राइबर टर्मिनल उपकरणों के विनिर्माण की इजाजत के साथ शुरू हुआ था । लगभग सात साल बाद, पी.वी. नरसिंह राव के प्रधानमंत्री काल में बहुत सारे क्षेत्रों में सरकारी अंकुश हटाए जाने लगे और निजी क्षेत्र के लिए दरवाजे खुल रहे थे। १६६१ में दूरसंचार उपकरणों के निर्माण का क्षेत्र देसी-विदेशी कम्पनियों के लिए खोल दिया गया जब एल्काटेल, एटी एंड टी, एरिक्सन, फुजित्सु और सीमेन्स जैसी कम्पनियाँ भारत आयीं। उदारीकरण और वैश्वीकरण के इस शुरूआती दौर में नई दूरसंचार नीति आई, २७ शहरों में रेडियो पेजिंग के लाइसेंस दिए गए और मूलभूत टेलीफोन सुविधाओं के क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र को आमंत्रित कर दिया गया। नवम्बर १६६४ में चार महानगरों में सेल्युलर मोबाइल सेवाओं के लाइसेन्स दिए गए। विकास और उदारीकरण का सिलसिला अटल बिहारी वाजपेयी के दूसरे प्रधानमंत्री काल में और आगे बढ़ा जब १६६६ में राष्ट्रीय दूरसंचार नीति आयी और दूरसंचार क्षेत्र के सुधारों ने मजबूती हासिल की। तब से २जी, ३जी और ४जी से होते हुए जमाना ५जी तक आ पहुँचा है और हम लैंडलाइनों से होते हुए मोबाइल फीचर फोन और स्मार्ट फोन के दौर में आ पहुँचे हैं।
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष