लोटन दास की बात सुनकर कुछ और नेता वहां आ गये। सभी धोती-कुरता खोलने लगे। भीड़ में से आवाज आयी, "नहीं चलेगी, नहीं चलेगी, सौदेबाजी नहीं चलेगी । "
कुछ ही देर में मीडियाकर्मी वहां पहुंच गये। दर्जनों कैमरा देख नेताओं में और जोश आ गया। कुछ तो अपनी चड्डी उतारने लगे, लेकिन बगलवाले ने ऐसा करने से रोका। फुसफुसाकर नेता को बताया, "चैनल पर लाइव आ रहा है।"
दूसरी तरफ शनिचर महतो मैदान में लोट रहे थे। चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे, “एक बीघा जमीन बेचकर पैसे दिये थे। मेरी तीनों पत्नियां मना कर रही थीं। बेटा घर छोड़कर चला गया। बेटी एक कार्यकर्ता के साथ भाग गयी। फिर भी मैं टिकट के लिए रात-दिन लगा रहा। पैसे लेकर भी मुझे टिकट नहीं दिया गया। अब मैं कौन-सा मुंह लेकर घर जाऊं।" इतना बोलते ही शनिचर की हालत खराब हो गयी। ... और फिर, हृदयगति रुक जाने से उनकी मौत हो गयी।
इसपर पार्टी कार्यालय में जमकर हंगामा मचा। भारी संख्या में पुलिस आ गयी। डंडे चले। टीवी पर लाइव चलता रहा। और देखते ही देखते यमराज को शनिचर महतो की मौत की खबर मिल गयी। पलक झपकते यमराज वहां पहुंच गये और अपने भैसा पर शनिचर महतो की आत्मा को जबरन बैठा चलते बने।
यमराज ने चित्रगुप्त के दरबार में लाकर शनिचर को पटक दिया। चित्रगुप्त ने इशारे से पूछा, "कौन है यह ?"
"महाराज, अभी-अभी मरा है। नाम शनिचर महतो है। खुद को वहां नेता बताता था। चुनाव में टिकट नहीं मिलने का दरद बर्दाश्त नहीं कर सका। हृदयगति रुक जाने से इसकी मृत्यु हो गयी।" यम ने हाथ जोड़कर कहा।
"ठीक है, शनिचर, तुम कठघरे में आ जाओ। तुम्हारे पाप-पुण्य का हिसाब-किताब हो जाने पर ही यह निर्णय लिया जाएगा कि तुम्हें स्वर्ग भेजना है या नरक।" चित्रगुप्त ने कड़ककर कहा।
शनिचर महतो दुखी मन से कठघरे में आ गये। उनसे कुछ पूछा जाता, इससे पहले ही बोल पड़े, "महाराज, या तो हमें स्वर्ग भेजिए या फिर से धरती पर। हम जिन्दगी भर जनता की सेवा किये हैं। हमें यह मौका मिलना ही चाहिए...।"
बीच में ही चित्रगुप्त महाराज बोल उठे, “कमबख्त, दुष्ट, इसे भी क्या तुम धरती समझते हो? जब कुछ पूछा जाए तो बोलना।" फिर कुछ फाइल निकालकर चित्रगुप्त देखने लगे। कुछ देर बाद नाराज होते हुए तेज आवाज में बोले, “दुष्ट, तुम पर पहला आरोप यही है कि तुमने अबतक जनता को लूटा है।"
هذه القصة مأخوذة من طبعة Naye Pallav 20 من Naye Pallav.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك ? تسجيل الدخول
هذه القصة مأخوذة من طبعة Naye Pallav 20 من Naye Pallav.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك? تسجيل الدخول
तीन मछलियां
एक नदी के किनारे उसी नदी से जुड़ा एक बड़ा जलाशय था। \"जलाशय में पानी गहरा होता है, इसलिए उसमें काई तथा मछलियों का प्रिय भोजन जलीय सूक्ष्म पौधे उगते हैं। ऐसे स्थान मछलियों को बहुत रास आते हैं। उस जलाशय में भी नदी से बहुत-सी मछलियां आकर रहती थीं। अंडे देने के लिए तो सभी मछलियां उस जलाशय में आती थीं। वह जलाशय लंबी घास व झाड़ियों द्वारा घिरा होने के कारण आसानी से नजर नहीं आता था।
टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान
समुद्रतट के एक भाग में एक टिटिहरी का जोड़ा रहता था। अंडे देने से पहले टिटिहरी ने अपने पति को किसी सुरक्षित प्रदेश की खोज करने के लिये कहा। टिटिहरे ने कहा \"यहां सभी स्थान पर्याप्त सुरक्षित हैं, तू चिन्ता न कर।\"
लड़ते बकरे और सियार
एकदिन एक सियार किसी गांव से गुजर रहा था। उसने गांव के \"बाजार के पास लोगों की एक भीड़ देखी।
भोलाराम का जीव
ऐसा कभी नहीं हुआ था... धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफारिश के आधार पर स्वर्ग या नर्क में निवास - स्थान 'अलॉट करते आ रहे थे... पर ऐसा कभी नहीं हुआ था।
कसबे का आदमी
सुबह पांच बजे गाड़ी मिली। उसने एक कंपार्टमेंट में अपना बिस्तर लगा दिया। समय पर गाड़ी ने झांसी छोड़ा और छह बजते-बजते डिब्बे में सुबह की रौशनी और ठंडक भरने लगी। हवा ने उसे कुछ गुदगुदाया। बाहर के दृश्य साफ हो रहे थे, जैसे कोई चित्रित कलाकृति पर से धीरे-धीरे ड्रेसिंग पेपर हटाता जा रहा हो। उसे यह सब बहुत भला - सा लगा। उसने अपनी चादर टांगों पर डाल ली। पैर सिकोड़कर बैठा ही था कि आवाज सुनाई दी, ' पढ़ो पटे सित्ताराम सित्ताराम...'
मुगलों ने सल्तनत बख्श दी
हीरेजी को आप नहीं जानते और यह दुर्भाग्य की बात है। इसका यह अर्थ नहीं कि केवल आपका दुर्भाग्य है, दुर्भाग्य हीरोजी का भी है। कारण, वह बड़ा सीधा-सादा है। यदि आपका हीरोजी से परिचय हो जाए, तो आप निश्चय समझ लें कि आपका संसार के एक बहुत बड़े विद्वान से परिचय हो गया।
भिखारिन
जाह्नवी अपने बालू के कम्बल में ठिठुरकर सो रही थी। शीत कुहासा बनकर प्रत्यक्ष हो रहा था। दो-चार लाल धारायें प्राची के क्षितिज में बहना चाहती थीं। धार्मिक लोग स्नान करने के लिए आने लगे थे।
अंधों की सूची में महाराज
गोनू झा के साथ एकदिन मिथिला नरेश अपने बाग में टहल रहे थे। उन्होंने यूं ही गोनू झा से पूछा कि देखना और दृष्टि-सम्पन्न होना एक ही बात है या अलग-अलग अर्थ रखते हैं?
कौवे और उल्लू का बैर
एकबार हंस, तोता, बगुला, कोयल, चातक, कबूतर, उल्लू, आदि सब पक्षियों ने सभा करके यह सलाह की कि उनका राजा वैनतेय केवल वासुदेव की भक्ति में लगा रहता है; व्याधों से उनकी रक्षा का कोई उपाय नहीं करता; इसलिये पक्षियों का कोई अन्य राजा चुन लिया जाय। कई दिनों की बैठक के बाद सबने एक सम्मति से सर्वाङग सुन्दर उल्लू को राजा चुना।