يحاول ذهب - حر
भोलाराम का जीव
Naye Pallav 20
|Naye Pallav
ऐसा कभी नहीं हुआ था... धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफारिश के आधार पर स्वर्ग या नर्क में निवास - स्थान 'अलॉट करते आ रहे थे... पर ऐसा कभी नहीं हुआ था।
सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर पर रजिस्टर देख रहे थे, गलती पकड़ में ही नहीं आ रही थी। आखिर उन्होंने खीझकर रजिस्टर इतने जोर से बंद किया कि मक्खी चपेट में आ गई। उसे निकालते हुए वे बोले, "महाराज, रिकार्ड सब ठीक है। भोलाराम के जीव ने पांच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ, पर यहां अभी तक नहीं पहुंचा।"
धर्मराज ने पूछा, "और वह दूत कहां है?"
"महाराज, वह भी लापता है।"
इसी समय द्वार खुले और एक यमदूत बदहवास वहां आया। उसका मौलिक कुरूप चेहरा परिश्रम, परेशानी और भय के कारण और भी विकृत हो गया था। उसे देखते ही चित्रगुप्त चिल्ला उठे, "अरे, तू कहां रहा इतने दिन? भोलाराम का जीव कहां है?"
यमदूत हाथ जोड़कर बोला, "दयानिधान, मैं कैसे बतलाऊं कि क्या हो गया। आजतक मैंने धोखा नहीं खाया था, पर भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया। पांच दिन पहले जब जीव ने भोलाराम का देह त्यागा, तब मैंने उसे पकड़ा और इस लोक की यात्रा आरंभ की। नगर के बाहर ज्यों ही मैं उसे लेकर एक तीव्र वायु-तरंग पर सवार हुआ, त्यों ही वह मेरी चंगुल से छूटकर न जाने कहां गायब हो गया। इन पांच दिनों में मैंने सारा ब्रह्माण्ड छान डाला, पर उसका कहीं पता नहीं चला।"
धर्मराज क्रोध से बोला, "मूर्ख ! जीवों को लाते - लाते बूढ़ा हो गया, फिर भी एक मामूली बूढ़े आदमी के जीव ने तुझे चकमा दे दिया।"
दूत ने सिर झुकाकर कहा, "महाराज, मेरी सावधानी में बिलकुल कसर नहीं थी। मेरे इन अभ्यस्त हाथों से अच्छे-अच्छे वकील भी नहीं छूट सके, पर इस बार तो कोई इंद्रजाल ही हो गया।"
هذه القصة من طبعة Naye Pallav 20 من Naye Pallav.
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