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किस पर निकाल रहे हैं सलमान अपना गुस्सा
ऐसे ही नहीं सलमान खान को सभी बौलीवुड का भाईजान कहते हैं. वे मौजूदा मुश्किल घड़ी में अपनी हर संभव मदद लोगों तक पहुंचाने की कोशिश में लगे हैं, साथ ही दोटूक नसीहत उन्हें दे रहे हैं जो इस आपदा को अवसर बना रहे हैं.
घरेलू महिला कामगारों पर कोरोना की डबल आफत
आज देश में स्थिति इतनी गंभीर है कि लोगों के सामने आगे कुआं पीछे खाई वाली बात है. अगर वे बाहर काम के लिए निकलते हैं तो कोरोना का खतरा और घर पर रुकते हैं तो भूख से मरने का खतरा. इस मार के बीच घरेलू महिला कामगार कैसे जीवन निर्वाह कर रही हैं, जानें.
अंधभक्तों की नई नस्ल
डिजिटल युग में नए तरह के भक्तों की नस्ल पैदा हुई है. सुबहशाम आंख मलते ये भक्त ट्विटर, फेसबुक पर गालीगलौज करते दिख जाते हैं. थोकभाव में मिलने वाले ये भक्त ऐसेवैसे नहीं, बल्कि राजनीतिकभक्त हैं.
सरकार,जज और साख खोती न्यायव्यवस्था
कानून के कई जानकार मोदीकाल में भारत की न्यायिक स्वतंत्रता को ले कर चिंता जता चुके हैं. यह बात तथ्यों से सामने भी आई है कि न्यायिक प्रणाली में केंद्र सरकार का हस्तक्षेप दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. मोदी प्रशंसक जजों की नियुक्तियां प्रश्नचिह्न खड़ा कर रही हैं जबकि हालिया न्यायिक फैसले व अदालती टिप्पणियां की राजनीति को सूट करती हैं.
लाशों पर लडी सत्ता और धर्म की लड़ाई
देश और सरकार उपदेशों व प्रवचनों के बजाय वैज्ञानिक व तकनीकी राह अपनाते तो कोरोना के हालात भयावह न होते. कुंभ और रैलियों ने कोरोना का कहर इतना बढ़ा दिया कि जगहजगह लाशों के अंबार लग गए जैसे महाभारत के युद्ध के बाद लगे थे. लड़ाई तब भी सत्ता की थी और आज भी है.
महंगाई डायन खाए जात है
देश एक बार फिर से कोरोना संकट में फंसा है. कोरोना की दूसरी लहर देश पर भारी पड़ रही है. जमाखोरी और मुनाफाखोरी की नीयत के चलते महंगाई चरम पर है. जेब में पैसा नहीं है, इस के बाद भी महंगाई और बेरोजगारी की चर्चा नहीं हो रही.
कुव्यवस्था से हाहाकार
देश में मौजूदा हालात बताते हैं कि सरकारें जनहितैषी कभी नहीं बन सकतीं. सरकारें गरीबों के बारे में कभी नहीं सोच सकतीं.सरकारें तो बनी ही जनता पर शासन करने को हैं. जनता को सिर्फ वोटबैंक समझने की जिद इन्हें उस की लाशों से खेलने की इजाजत देती है.
बरबाद होती फिल्म इंडस्ट्री
मार्च माह की शुरुआत से देश, खासकर फिल्म नगरी मुंबई में कोरोना की नई लहर हावी हो गई है. इस ने पहले से ही बरबाद हो चुकी फिल्म इंडस्ट्री को ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है कि अब तो उस की कमर ही टूट सी गई है. कोरोना का फिर से जिस तरह का माहौल बना है उस से तो यही आभास हो रहा है कि शायद अब फिल्म इंडस्ट्री कभी उबर न पाए.
औरतों के लिए नवरात्रे त्योहार या अतिरिक्त बोझ
जिस देश को महिलाओं के लिए सब से असुरक्षित माना गया हो वहां नवरात्रे में कन्याओं की पूजा करना किसी ढोंग से कम नहीं. दुखद यह है कि पुरुष समाज के रचाए इस ढोंग को करने में भी महिलाएं ही पिसती हैं, उन के सिर ही तमाम तामझाम का अतिरिक्त बोझ पड़ता है.
पुजारियों को दानदक्षिणा क्यों
मध्य प्रदेश में आम लोग जाएं तेल लेने. युवाओं को न नौकरी न बेरोजगारी भत्ता, किसानों को राहत नहीं, कर्मचारियों को एरियर व महंगाई भत्ता नहीं और महिलाओं को सुरक्षा नहीं. लेकिन धर्म की दुकानदारी में बिलकुल भी कमी नहीं, इस के लिए पंडेपुजारियों को सरकारी दानदक्षिणा जारी है.
अमेरिका और मास शूटिंग
अमेरिका में मास शूटिंग बड़ी समस्या के तौर पर उभर रही है, जिस के लिए कहीं न कहीं नागरिकों को आर्स रखने की मंजूरी देने वाला कानून भी जिम्मेदार है. अमेरिका की जनता और नेताओं को मास शूटिंग रोकने की दिशा में कठोर कदम उठाने चाहिए वरना अमेरिका को ही नहीं, इस का दुष्प्रभाव अन्य देशों को भी झेलना पड़ सकता है.
गायत्री प्रजापति पर कस गया ईडी का शिकंजा
दलित समाज को उम्मीद होती है कि उस के बीच से उठा कोई युवक अगर देश की राजनीति में अपनी जगह बनाता है तो वह अपनी बिरादरी को गरीबी, अशिक्षा और जिल्लत की जिंदगी से उबारने के लिए कुछ करेगा. मगर अफसोस कि राजनीति में आने के बाद दलित नेता भी सवर्णों का चोला ओढ़ कर लूटकांड और दरिंदगी के झुंड का हिस्सा बन जाते हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापति की कहानी इसी की बानगी है.
धर्म और राजनीति के वार रिश्ते तारतार
धर्म और राजनीति हमेशा से इंसान व समाज पर गहरा प्रभाव डालते रहे हैं. कभीकभी इन की प्रस्तुति मिथ्या के कारण भारी विवाद पैदा होते रहे हैं. लेकिन आपसी रिश्तों में भी जब धर्म और राजनीति का दखल अधिकाधिक घुसपैठ करने लगे तो क्या परिणाम निकल कर आते हैं, जानें इस खास रिपोर्ट में.
समंदर में बूंद बराबर है अंबानी पर सेबी का जुर्माना
अंबानी हर मिनट 31,202 डौलर और हर दिन 4.5 मिलियन डौलर कमाते हैं. मुकेश अंबानी की संपत्ति दुनिया में 19 देशों की जीडीपी से अधिक है. उन के परिवार पर 25 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाना उन के घर में पड़े चिल्लरों पर नजर लगाने जैसा है. 25 करोड़ रुपया तो अंबानी परिवार के लिए हाथों का मैल है.
बंगाल चुनाव में 'राम नाम' की लूट
बंगाल में जहां धर्म कभी चुनावी मुद्दा नहीं रहा, वहां 'राम' के नाम पर भाजपा ने धर्म को हावी करने का प्रयास किया है. 'राम' अब भाजपा के प्रचारक जैसे लगने लगे हैं जिन्हें मुंह में रख भाजपाई दिग्गज राज्य में जहांतहां रैलियां कर झूठ परोस रहे हैं.
बंगलादेश में हिंसा मोदीविरोध या भारतविरोध?
बंगलादेश के 50वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आयोजित समारोह में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्य अतिथि बनाए जाने के विरोध में वहां भड़की हिंसा ने कई सवालों को खड़ा किया है.
जीएनसीटी दिल्ली एक्ट 2021 केजरीवाल सरकार पर मोदी का कब्जा
आखिर दिल्ली पर राज किस का है? एक तरफ 70 में से 62 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर भारी बहुमत से जीती आम आदमी पार्टी की सरकार है, दूसरी तरफ मोदी सरकार के बनाए उपराज्यपाल हैं. दिल्ली के अधिकारों के घाव को अब कुरेदा नहीं जा रहा, बल्कि इस बार कानूनी जूतों से मसल डाला गया है.
लाइलाज नक्सलवाद बेबस सरकार
सत्ता अगर वाकई बंदूक की नली से मिलती, जैसा कि नक्सली मानते हैं, तो दुनियाभर में राज आतंकियों का होता. लोकतांत्रिक व्यवस्था में खामियां और कमजोरियां हैं और अब तो शोषण व तानाशाही भी लोकतंत्र की ओट में होने लगे हैं. लेकिन हिंसक और सशस्त्र विरोध यानी नक्सलवाद इस का हल नहीं है, न ही सरकार का हिंसक जवाब इस का हल है.
कोरोना वैक्सीन लगवा रहे हैं?
कोरोना वायरस संक्रमण की चौथी लहर बहुत तेजी से लोगों को अपनी चपेट में लेती जा रही है. ऐसे में जल्द से जल्द वैक्सीन पाने की होड़ में अस्पतालों में भारी भीड़ उमड़ रही है. मगर वैक्सीन लेने से पहले सावधानी जरूरी है.
किडनी फेल होने की वजह मोटापा तो नहीं
शरीर का वजन बढ़ने से किडनी पर दबाव पड़ता है. किडनी शरीर में टौक्सिंस को फिल्टर करने का काम करती है. वजन बढ़ने पर किडनी को टौक्सिंस को फिल्टर करने में काफी मेहनत करनी पड़ती है.
हैंड सैनिटाइजर खरीदने से पहले जान लें
सैनिटाइजर में अल्कोहल होने से वह हाथों की त्वचा से वायरस को घेरने वाले एन्वेलप प्रोटीन को नष्ट करता है. जिन सैनिटाइजरों में अल्कोहल की मात्रा 60 फीसदी से कम होती है वे वायरस नष्ट करने में कम प्रभावी होते हैं अथवा अप्रभावी होते हैं.
बिगड़ती अर्थव्यवस्था का जिम्मेदार कौन कोरोना या सरकार की नीतियां
देश की अर्थव्यवस्था इस समय नाजुक दौर से गुजर रही है. लोगों के पास खर्च करने को पैसा नहीं है जबकि महंगाई चरम पर है. सरकार इस स्थिति का जिम्मेदार कोरोना को बता रही है. लेकिन क्या सिर्फ कोरोना ही जिम्मेदार है?
बच्चों की इम्यूनिटी को बढ़ाएं ऐसे
छोटे बच्चों में इम्यूनिटी कम होने के चलते अधिक इन्फैक्शन होने का खतरा बना रहता है. इस कारण आजकल पेरेंट्स के सामने सब से बड़ा प्रश्न बच्चों की हैल्दी डाइट को ले कर रहता है. सो यहां जानते हैं कि बच्चों की इम्यूनिटी कैसे बढ़ाएं.
धर्म बेचता ओटीटी
हिंदी के ओटीटी प्लेटफौर्स पर अब धर्म और सैक्स का कारोबार फलफूल रहा है. युवाओं का ब्रेनवाश करने के लिए धर्म को सैक्स की चाशनी में डुबो कर बेचा जा रहा है. जीवन व देश के मुद्दों की बातें गायब हैं. वही हो रहा है जो सरकार व धर्म के ठेकेदार चाहते हैं. कभीकभार थोड़ा सच कोई परोस भी देता है तो धर्म के धंधेबाज व अंधभक्त इतना हल्ला मचाते हैं कि देश, धर्म तथा संस्कृति सब खतरे में पड़ते नजर आने लगते हैं. पेश है इस गोरखधंधे पर खास रिपोर्ट.
धर्म के शब्दजाल में उलझते लोग
जो मिल जाए उस से संतुष्ट हो लो और जो न मिले उस के प्रति असंतुष्टि मत जताओ यानी स्थितप्रज्ञ हो जाओ.भगवान की तरह सरकार से सवाल मत करो और न ही असहमति प्रकट करो, इसी में सार है. क्या ऐसा हो सकता में खुश और दुख में व्यथित न हो? है कि कोई सुख
आप के पीछे नौकरी भागे
सरकारी नौकरी का आकर्षण पहले भी था और आज भी पढ़ेलिखे नौजवान सरकारी नौकरी के पीछे जीतोड़ मेहनत करते हैं लेकिन अकसर निराशा हाथ लगती है. ऐसे में स्वरोजगार और प्राइवेट जौब के औप्शन बेहतर कह सकते हैं.
कांग्रेस से डरी हुई डबल इंजन सरकार
कांग्रेस पार्टी का सब से खराब समय होने के बावजूद भाजपा को आज भी उस की आहट डरा रही है. मोदी और शाह अपनी सरकार के कार्यकाल की रीतिनीति और उपलब्धियों का बखान करने की जगह कांग्रेस के 70 साल का अपना पुराना राग आलाप रहे हैं. इस डर के पीछे आखिर वजह क्या है?
"जंगल और जंगली जानवरों को नाश कर विकास किया जाना ठीक नहीं" श्रिया पिलगांवकर
'मिर्जापुर' सीरियल में स्वीटी के किरदार को कौन नहीं जानता.मस्तमौला, बिंदास, बेधड़क. अपनी अलग ही फैनबेस बना कर स्वीटी का किरदार निभाने वाली श्रिया पिलगांवकर अब फिल्म 'हाथी मेरे साथी' में क्या अलग कर रही हैं, जानते हैं.
अब राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हुए भगवा
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की चयन प्रक्रिया सवालों के घेरे में है. यह महज संयोग है, प्रयोग है या एक प्रकार का लालच. जो भी है, हकीकत यह है कि जो कलाकार, फिल्मकार भाजपा सरकार की विचारधारा के पक्ष में हैं, उन का चयन तो होगा ही.
महाराष्ट्र ड्रामे का अर्धसत्य
राजनीतिक संरक्षण में फलताफूलता पुलिसिया भ्रष्टाचार कभी किसी सुबूत का मुहताज नहीं रहा.इस के लिए किसी एक दल या नेता को ही गुनाहगार नहीं ठहराया जा सकता. असल जिम्मेदार तो वह सिस्टम है जिसे लोग अकसर कोसा करते हैं. महाराष्ट्र का ड्रामा इस का अपवाद नहीं, जिस पर मुद्दे की बात कम राजनीति ज्यादा हुई.