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एफपीओ: भारतीय किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण संस्थान
Modern Kheti - Hindi
|1st February 2025
भारत के कृषि परिदृश्य में छोटे और सीमांत किसान अधिक ( 86 प्रतिशत) हैं। इनमें से अनेक किसान सीमित संसाधन और छोटी जोत के कारण मोलभाव करने की स्थिति में नहीं होते।
इन समस्याओं के हल के लिए सरकार ने किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के गठन को प्रोत्साहित किया है। ये संगठन बतौर कानूनी संस्था किसानों की बाजार तक पहुंच, संसाधनों की पूलिंग और मोलभाव की ताकत बढ़ाने के लिए काम करते हैं। हालांकि एफपीओ को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिससे उनकी क्षमता प्रभावित होती है। इस संक्षिप्त लेख में हम ऐसे ही कुछ पहलुओं को रेखांकित करने के साथ उनका प्रदर्शन सुधारने के लिए कुछ सुझाव दे रहे हैं।
पहले कुछ संदर्भ :
1. किसान उत्पादक संगठन : (एफपीओ) एक आर्थिक संस्था है जो सामाजिक परिवेश में कार्य करती है। इसका ढांचा ग्रामीण परिवेश की समुदाय - संचालित और सहकारी प्रकृति के भीतर काम करते हुए किसानों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने का है।
क. एक आर्थिक इकाई के रूप में : एफपीओ कृषि उपज की सामूहिक खरीद, उत्पादन, प्रसंस्करण और मार्केटिंग पर फोकस करते हैं। संसाधनों को एकत्रित करके वे अपने सदस्य किसानों के लिए लाभप्रदता और सस्टेनेबिलिटी बढ़ाते हैं। व्यवसाय के रुप में कार्य करते हुए एफपीओ राजस्व अर्जित करते हैं और कुछ मामलों में सदस्य किसानों में लाभ का वितरण भी करते हैं। इससे ग्रामीण आर्थिक विकास में योगदान होता है तथा किसानों की आय और उत्पादकता बढ़ती है।
ख. सामाजिक परिवेश : एफपीओ ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक ताने-बाने से जुड़े होते हैं और छोटे तथा सीमांत किसानों के सामूहिक कल्याण के लिए काम करते हैं। उनका उद्देश्य गरीबी कम करना, सस्टेनेबल कृषि को बढ़ावा देना और स्थानीय क्षमता को बढ़ाना है। एफपीओ सहयोग, साझा निर्णय लेने और सदस्यों के बीच आपसी मदद को बढ़ावा देते हैं और सस्टेनेबल कार्यों के लिए प्रशिक्षण देते हैं। इसके अतिरिक्त, एफपीओ स्थानीय स्तर पर अवसरों का सृजन करके ग्रामीण बेरोजगारी, लैंगिक असमानता और गांव से शहर की ओर पलायन जैसी सामाजिक चुनौतियों से निपटने में मदद करते हैं।
Diese Geschichte stammt aus der 1st February 2025-Ausgabe von Modern Kheti - Hindi.
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