कानपुर से घाटमपुर जाने वाले मार्ग पर एक कस्बा हैपतारा. इसी कस्बे के जगदीशपुर में राम औतार पांडेय का परिवार रहता था. उन के परिवार में पत्नी सुधा के अलावा एक बेटा में गौरव तथा बेटी सपना थी.
प्राइवेट नौकरी कर गुजरबसर करने वाले राम औतार एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति भले ही सामान्य थी, लेकिन वह अपने उसूलों से समझौता कभी नहीं करते थे. इसी कारण वह जिद्दी पांडेय के नाम से भी जाने जाते थे.
राम औतार की बेटी सपना बेहद खूबसूरत थी. उस की इस खूबसूरती में चार चांद लगाता था उस का स्वभाव. वह अत्यंत चंचल व चपल स्वभाव की थी. जवानी की दहलीज पर उस ने कदम रखा तो उस की खूबसूरती और बढ़ गई. देखने वालों की निगाहें जब उस पर पड़तीं तो ठहर कर रह जातीं. लेकिन वह किसी को भाव नहीं देती थी.
वह पतारा के शक्तिपीठ कालेज से बीए की पढ़ाई कर रही थी. राम औतार पांडेय सपना को उच्च शिक्षा दिलाना चाहते थे, ताकि उसे अच्छी नौकरी मिल सके.
सपना जिस कालेज में पढ़ती थी, उसी में रायपुर (नर्वल) का रहने वाला राजकपूर भी बीए कर रहा था. कालेज में अकसर मुलाकात होने से सपना की राजकपूर से दोस्ती हो गई.
सपना और राजकपूर जब भी मिलते, तक बातचीत करते थे. राजकपूर अपना करिअर बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था, लेकिन लगातार मिलने से उन के बीच प्यार की कोपलें फूटने लगीं. उन्हें महसूस होने लगा कि वे एकदूसरे को चाहने लगे हैं. वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं.
लेकिन राजकपूर के दिल में एक बात खटकती थी कि वह दूसरी जाति का है. जब सपना को हकीकत पता चलेगी तो कहीं वह मुंह न मोड़ ले.
आगे कुछ गड़बड़ न हो, यह जानने के लिए एक दिन राजकपूर ने सपना से कहा, “सपना, हम दोनों एकदूसरे को कितना प्यार करते हैं, यह हम ही जानते हैं, पर मैं आज तुम्हें अपनी हकीकत बताना चाहता हूं. सपना, मेरी जाति तुम से अलग है. मैं गुप्ता हूं और तुम ब्राह्मण. इस जाति भेद के कारण कहीं तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगी? कहीं तुम्हारे घर वाले मुझे तुम से दूर तो नहीं कर देंगे?"
Diese Geschichte stammt aus der February 2023-Ausgabe von Manohar Kahaniyan.
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