खतरे में हैं हाथी
Manohar Kahaniyan|August 2024
इंसान अपने स्वार्थ के लिए हाथियों का शिकार करना बंद नहीं कर रहा है. तो वहीं गुस्सैल हाथियों की चपेट में आ कर हर साल अनेक लोग अपनी जान से हाथ धो रहे हैं. आखिर इंसान और हाथियों के बीच क्यों बढ़ रहा है टकराव? और इस दिशा में सरकार ने उठाया है क्या कदम?
वेणीशंकर पटेल 'ब्रज'
खतरे में हैं हाथी

साइलेंट वैली नैशनल पार्क, केरल में 27 मई, 2020 को मादा हाथी की दर्दनाक मौत की दास्तान आप को जरूर याद होगी. 15 वर्ष की गर्भवती मादा हाथी को किसी सिरफिरे ने पटाखों से भरा अनानास खिला दिया था. पटाखे मुंह में फटने से उस का जबड़ा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था. इस वजह से 2 सप्ताह तक वह न तो कुछ खा सकी और न पानी पी सकी.

मादा हाथी को हुए असहनीय दर्द का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसे इतनी जलन और दर्द हुआ कि वह कई दिनों तक झील में खड़ी रही. आखिरकार, कमजोरी से वह झील में गिरी और डूबने से उस की और गर्भ में पल रहे बच्चे की दर्दनाक मौत हो गई.

इस घटना के बाद वन्यजीव संरक्षण के लिए काम कर रहे संगठनों के लोगों ने काफी होहल्ला मचाया और वक्त गुजरते ही यह किस्सा भी लोगों की जुबान से गायब हो गया. भारत में हाथियों और इंसानों के बीच खूनी संघर्ष आज भी जारी है. दुनिया के कई देशों में हाथी अब भी संकट में हैं, भारत में पिछले 8 सालों में हाथियों की संख्या में इजाफा तो हुआ है, मगर हाथियों की मौत भी कम नहीं हुई है.

वर्ल्ड एनिमल प्रोटेक्शन संस्था के अनुसार इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष की वजह से भारत में औसतन रोजाना एक व्यक्ति की मौत होती है, जिस में अधिकांश किसान होते हैं. पिछले 6 सालों में हाथियों और इंसानों के बीच टकराव में जितनी मौतें हुई हैं, उन में से 48 फीसदी केवल ओडिशा, पश्चिम बंगाल और झारखंड में हुई हैं. अगर असम, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु को भी इस में जोड़ दें तो इन 6 राज्यों में मरने वालों की संख्या 85 प्रतिशत है.

इन राज्यों के किसानों की शिकायत रहती है कि जंगली हाथी उन की फसलें बरबाद कर रहे हैं, इस से उन्हें भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है. इन राज्यों के लोगों का कहना है कि आबादी वाले क्षेत्रों में जंगली हाथियों की घुसपैठ लगातार बढ़ रही है.

केंद्रीय वन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हाथी और इंसानों के टकराव में हर साल 400-500 लोगों की मौत होती है, जबकि 100 हाथियों को भी इस टकराव में जान गंवानी पड़ती है.

Diese Geschichte stammt aus der August 2024-Ausgabe von Manohar Kahaniyan.

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