सुमन चौधरी ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था, 'मेरा नाम सुमन चौधरी है. मुझे पता है कि आत्महत्या नहीं करनी चाहिए, लेकिन मैं आत्महत्या करना चाहती हूं. मेरे मरने की वजह मेरा परिवार नहीं है, बल्कि समाज है, जिस ने 'आंटासांटा' (बेटी दे कर बहू लाने) की प्रथा चला रखी है.
'इस वजह से लड़कियों को जिंदा मौत मिलती है, जिस में समाज के समझदार कहलाए जाने वाले लोग अपनी बेटियों को बहू लाने के बदले समाज में बेच देते हैं. आज समाज की नजरों में तलाक लेना गुनाह है, अपनी मरजी से शादी करना गुनाह है.
'मैं मानती हूं कि तो फिर यह 'आंटासांटा' की प्रथा भी गलत है. आज इस कुप्रथा की वजह से समाज में हजारों लड़कियों व परिवारों की जिंदगी बरबाद हो गई है. इस प्रथा के चलते पढ़ीलिखी लड़की की जिंदगी पर गहरा बुरा असर पड़ता है. 17 साल की लड़की को 40 साल के अधेड़ से ले कर 70 साल के बुड्ढे को ब्याह दिया जाता है, केवल अपने स्वार्थ के कारण.'
आगे दूसरे पेज पर सुमन लिखती हैं, 'मैं चाहती हूं कि मेरी मौत के बाद मेरी बातें बनाने व मेरे परिवार पर उंगली उठाने के बजाय समाज इस कुप्रथा को बंद करने के खिलाफ आवाज उठाए. इस प्रथा को बंद करने के लिए समाज के भाइयों को शुरुआत करनी होगी.
'मेरी हर एक भाई को उन की बहनों की राखी की सौगंध कि वे अपनी जिंदगी संवारने के लिए अपनी बहनों की जिंदगी नरक न बनाएं. आज इस प्रथा के कारण समाज के लोगों की सोच इतनी गंदी हो गई है कि लड़की के पैदा होते ही सोच लिया जाता है कि इस लड़की को किस लड़के के बदले देना है.'
सुमन और आगे लिखती हैं, 'मैं चाहती हूं कि इस कुप्रथा के बारे में स्कूलकालेज के पाठ्यक्रमों में जानकारी दें. अखबारों व मीडिया के जरीए समाज को जागरूक किया जाए, ताकि हजारों लड़कियों की जिंदगी बरबाद होने से उन्हें बचाया जा सके. अगर मेरे कारण 10 लड़कियों की जिंदगी बरबाद होने से बच गई, तो मैं समझुंगी कि मेरे मरने के बाद भी मेरी जिंदगी किसी के काम आ गई.'
आत्महत्या के वक्त सुमन की हताशा, नाउम्मीदी या निराशा कैसी रही होगी और कैसे जा कर वह आखिर इस नतीजे पर पहुंची होगी, उसे अनदेखा करना नाइंसाफी होगी.
Diese Geschichte stammt aus der December Second 2022-Ausgabe von Saras Salil - Hindi.
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