प्रशांत अर्चना के साथ पढ़ता था. अब वह बैंक में क्लर्क था. दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे.
अर्चना मांबाप की एकलौती औलाद थी. कभी उस ने तंगी और परेशानियों का मुंह न देखा था.
उधर प्रशांत के दिल में एक बात उठती थी कि अगर अर्चना उस से बिछड़ गई, तो वह समझेगा कि दुनिया की सब से कीमती चीज उस ने खो दी है.
लेकिन दूसरी तरफ वह यह भी सोचता था कि क्या वह अर्चना को वे सारे सुख व आराम दे सकेगा, जो उस के मांबाप के घर में उसे मिल रहे हैं? उस ने इरादा कर लिया कि वक्त पड़ने पर वह अपने प्यार की बलि चढ़ा देगा.
प्रशांत अपने घर की परेशानियों से इस तरह घिरा था कि वह अर्चना को हर तरह की सुखसुविधाएं नहीं दे सकता था.
प्रशांत और अर्चना के बीच पैसे की खाई तो थी ही, जाति की दीवार भी थी. दरअसल, प्रशांत छोटी जाति का था. अर्चना को इस बात की परवाह नहीं थी, पर प्रशांत जानता था कि इस तरह के प्रेम विवाह के बाद समाज में रहना बड़ा मुश्किल होता है.
भले ही प्रशांत को सरकारी नौकरी मिल गई थी, पर जाति का ठप्पा अभी भी उस के साथ चिपका हुआ था.
घंटी लगातार बज रही थी, पर अर्चना अपने खयालों में खोई थी. मां की आवाज से वह चौंक उठी और किताब को मेज पर रख कर दरवाजे की ओर चली गई.
दरवाजा खोलते ही एक खूबसूरत नौजवान को देख कर वह चकरा गई और एकटक उसे देखती रह गई.
तभी उस नौजवान के होंठ हिले, 'क्या मैं अंदर आ सकता हूं?"
अर्चना ने उसे सवालिया नजरों से देखा, तो वह बोला, “मेरा नाम नवीन है... मैं रामप्रकाशजी से मिलना चाहता हूं?"
"ओह, आप का मतलब पिताजी से है. वे अभी दफ्तर से नहीं लौटे हैं."
“चाचीजी तो घर में होंगी?"
"आप अंदर आइए... मैं अभी मां को बुलाती हूं," इतना कहते हुए अर्चना एक ओर हट गई.
नवीन के अंदर आते ही अर्चना मां को बुलाने चली गई.
कुछ दिनों बाद मां ने अर्चना को बताया कि उस की शादी नवीन से पक्की कर दी गई है, जो एक इंजीनियर है. वह उन्हीं की तरह ऊंची जाति का भी है.
अर्चना को बहुत गुस्सा आया, पर वह खामोशी से अपने काम में लग गई.
अगले दिन अर्चना ने प्रशांत को सबकुछ बता दिया. वह चुपचाप सुनता रहा.
Diese Geschichte stammt aus der December Second 2022-Ausgabe von Saras Salil - Hindi.
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