इनकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी
Rupayan|October 06, 2023
हर साल 11 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है, ताकि समाज को बालिकाओं के सामने आने वाली चुनौतियों और उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए जागरूक किया जा सके, लेकिन कितने जागरुक हैं हम बालिकाओं की सुरक्षा के लिए?
रजनी अरोड़ा
इनकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी

धी आबादी कही जाने वाली महिलाएं हमारे देश में तकरीबन पिछले दो दशकों से घरों से बाहर निकल रही हैं। हर क्षेत्र में अपनी पहचान कायम कर रही हैं। बिना किसी बंदिश के जिंदगी जीने और खुली हवा में सांस लेने की कोशिश कर रही हैं। इसके बावजूद पुरुष प्रधान समाज में सदियों से चली आ रही असहाय और पराश्रित छवि से वे उबर नहीं पाई हैं। साक्षी हत्याकांड जैसे मामले क्रूरता और नृशंसता का प्रमाण हैं। दिल दहला देने वाली ये वारदातें मौजूदा सामाजिक-सांविधानिक व्यवस्था पर प्रहार भी करती हैं।

हालांकि आज समाज में हर स्तर पर बहुमुखी विकास और लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार आया है, लेकिन समाज के तथाकथित ठेकेदार बने बैठे लोग तरक्की की राह में अड़चनें भी पैदा करते हैं। कई बार बढ़ते आक्रोश और दबदबा कायम रखने की प्रवृत्ति के चलते महिलाओं को शारीरिक-मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने से भी वे पीछे नहीं रहते हैं। आए दिन टीवी, अखबारों और सोशल मीडिया पर महिलाओं के साथ क्रूर हिंसा की खबरें इसका प्रमाण हैं। दुखद यह है कि आमजन अपने सामने होते अपराध के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया लेने के बजाय चुपचाप कन्नी काटकर निकल जाता है। ये घटनाएं लड़कियों के प्रति समाज की बढ़ती असंवेदनशीलता की ओर इशारा करती हैं।

Diese Geschichte stammt aus der October 06, 2023-Ausgabe von Rupayan.

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