दो बच्चों की मां हैं 65 वर्षीय ज्योति वर्मा । उनके दोनों बच्चे कामकाजी हैं। वह कुछ मिनट में ही एक बात को दोहरा देती हैं। उन्हें याद ही नहीं रहता कि वह बातचीत के दौरान जो बात बताने जा रही हैं, उसे पहले भी बता चुकी हैं। ज्योति की तरह मिश्रा जी भी अक्सर टहलने जाने पर अपना छाता पार्क की बेंच पर रखकर उसे उठाना भूल जाते हैं। वास्तव में, सेवानिवृत्ति की उम्र तक आते-आते ऐसे लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है, जो भूलने की बीमारी से परेशान हैं। दिन के कई घंटे तक लगातार बिना भूले काम करना तो उनके लिए बहुत दूर की बात है। अपॉइंटमेंट मिस कर देना, ऑफिस के जरूरी कागजात, चाबी, लंच बॉक्स, सामने वाले का नाम या दूसरे बेहद जरूरी काम भूल जाना वृद्धावस्था की ओर कदम बढ़ाते लोगों के लिए आम बात होती जा रही है। दरअसल, जीवन-शैली की आदतें दिमाग के स्वास्थ्य पर सबसे अधिक असर डालती हैं। यदि कोई भी व्यक्ति लंबे समय तक तनाव में रहता है तो यह भी दिमाग को प्रभावित कर सकता है। भूलने की बीमारी चिंता बढ़ा देती है। हम यह समझते हैं कि भूलने की बीमारी के कारण आगे चलकर हमारे घर के बड़े-बुजुर्ग सीधे डिमेंशिया और अल्जाइमर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हो सकते हैं। जानकार कहते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ स्वास्थ्य और मस्तिष्क से जुड़ी परेशानियों को दूर रखने के लिए माइंड गेम्स मदद कर सकते हैं। शोध भी बताते हैं कि अलग-अलग माइंड गेम बुजुगों को न सिर्फ मानसिक रूप से सक्रिय रखते हैं, बल्कि मस्तिष्क से जुड़ी कई बीमारियों को भी दूर रख सकते हैं।
■ मस्तिष्क पर क्यों होता है असर
मनोचिकित्सक डॉ. ऑस्टिन फर्नांडीस बताते हैं, "उम्र बढ़ने का असर अणुओं, कोशिकाओं, रक्त वाहिकाओं, आकृति और अनुभूति पर पड़ता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, मस्तिष्क का आकार सिकुड़ता जाता है, खासतौर पर फ्रंटल कॉर्टेक्स में। जैसे-जैसे वाहिकाएं वृद्ध होती जाती हैं और ब्लड प्रेशर बढ़ता जाता है, स्ट्रोक और इस्केमिया की आशंका भी बढ़ जाती है, साथ ही ब्रेन के व्हाइट मैटर में घाव विकसित हो जाते हैं। वैज्ञानिक साक्ष्यों से पता चलता है कि शारीरिक एवं मानसिक गतिविधि से नई मस्तिष्क कोशिकाएं बनती हैं। यहां तक कि डिमेंशिया की शुरुआत को भी रोका जा सकता है। चेस और पजल्स जैसे खेल स्मरण शक्ति को मजबूत करते हैं।"
Diese Geschichte stammt aus der July 12, 2024-Ausgabe von Rupayan.
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