सावन का महीना भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है और इस समय महिलाओं के लिए चूड़ियों का आकर्षण और भी बढ़ जाता है। भारतीय संस्कृति में चूड़ियां स्त्री के सुहाग की निशानी मानी जाती हैं। ये चूड़ियां न केवल उनकी सुंदरता में चार चांद लगाती हैं, बल्कि इनके कई सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी हैं। चूड़ियां पहनने से महिलाओं के हाथों की सुंदरता बढ़ती है। विभिन्न रंगों और डिजाइनों की चूड़ियां महिलाओं की पोशाक के साथ मेल खाती हैं और उनके आकर्षण को बढ़ाती हैं। ऐसे में, इस सावन आप भी इस आकर्षण को और बढ़ा सकती हैं।
मिरर वर्क की चमक : इस समय मिरर वर्क काफी ट्रेंड में है, फिर चाहे वो कपड़ों में हो या चूड़ियों में। इसमें कई तरह की वैरायटी उपलब्ध हैं, जिनमें हैवी और लाइट वर्क, दोनों शामिल हैं। मिरर वर्क वाली चूड़ियां हर रंग में खूबसूरत नजर आती हैं। आप जब मिरर वर्क वाली चूड़ियों को कैरी करें तो सिंपल आउटफिट पहनें। इससे आपके लुक का एक अनोखा और आकर्षक अंदाज नजर आएगा।
Diese Geschichte stammt aus der August 02, 2024-Ausgabe von Rupayan.
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शाप भी देते हैं पितर
धर्मशास्त्रों ने श्राद्ध न करने से जिस भीषण कष्ट का वर्णन किया है, वह अत्यंत मार्मिक है। इसीलिए शास्त्रों में पितृपक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करने को कहा गया है।
हर तिथि का अलग श्राद्धफल
पितृपक्ष में पितरों के निमित्त तिथियों का ध्यान रखना भी जरूरी है। शास्त्रों के अनुसार, तिथि अनुसार किए गए श्राद्ध का फल भी अलग-अलग होता है।
पितृदोष में पीपल की परिक्रमा
शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में पितृदोष दूर करने के उपाय जरूर करने चाहिए, ताकि पितर प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें।
पिंडदान के अलग-अलग विधान
व्यक्ति का अंत समय कैसा रहा, इस आधार पर उसकी श्राद्ध विधि भी विशेष हो जाती है। अलग-अलग मृत्यु स्थितियों के लिए अलग-अलग तरह से पिंडदान का विधान है।
पितृपक्ष में दान
भारतीय संस्कृति में दान की महत्ता अपरंपार है। लेकिन पितृ पक्ष के दौरान दान का विशेष महत्व है। कुछ वस्तुओं के दान को तो महादान माना गया है।
जैसी श्रद्धा, वैसा भोज
पितृपक्ष में ब्राह्मण भोज जरूरी है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति अत्यंत गरीब है तो वह जल में काले तिल डालकर ही पूर्वजों का तर्पण कर सकता है।
स्त्रियों को भी है अधिकार
यदि परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं है तो ऐसी स्थिति में स्त्री भी संकल्प लेकर श्राद्ध कर सकती है। शास्त्रों ने इसके लिए कुछ नियम बताए हैं।
निस्संतान के श्राद्ध की विधि
शास्त्रों के अनुसार, पुत्र ही पिता का श्राद्ध कर्म करता है। ऐसे में जो लोग निस्संतान थे, उन्हें तृप्ति कैसे मिलेगी ? शास्त्रों ने उनके लिए भी कुछ विधान बताए हैं।
पंडित न हों तो कैसे करें पिंडदान
पिंडदान के लिए यदि कोई पंडित उपलब्ध नहीं हो पा रहा है तो ऐसे में शास्त्रों ने इसका भी मार्ग बताया है, जिससे आप श्राद्ध कर्म संपन्न कर सकते हैं।
किस दिशा से पितरों का आगमन
पितरों के तर्पण में कुछ वास्तु नियम भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिनके पालन से तर्पण का अधिकतम लाभ होता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।