सही-सही दाम लगाओ!
Rupayan|October 04, 2024
आप जब बाजार जाती होंगी तो मोल-भाव भी जरूर करती होंगी और सही दाम में अपनी पसंदीदा चीज खरीदकर खुश भी होती होंगी। मनोवैज्ञानिक इस मोल-भाव करने को जिंदगी में एक 'विशेष कला' मानते हैं, जिसमें न केवल अच्छे संवाद कौशल की जरूरत होती है, बल्कि समझदारी, धैर्य और आत्मविश्वास भी जरूरी है।
सोनम लववंशी
सही-सही दाम लगाओ!

"मैं हमेशा आपकी ही दुकान से कपड़े खरीदती हूं और आप इतना दाम बोल रहे हो!"

"नहीं मैडम जी, 500 रुपये से एक पैसा भी कम नहीं होगा।"

"अरे! क्या बात कर रहे हो भैया! पिछली दुकान से मिश्रा आंटी ने तो यह साड़ी 300 रुपये में खरीदी हैं।"

"मैडम जी, उस साड़ी की क्वालिटी अच्छी नहीं होगी। चलो, 490 में ले जाओ मैडम जी।"

"नहीं-नहीं, 350 रुपये से एक पैसा ज्यादा नहीं दूंगी। देना हो तो बोलो?"

"अच्छा चलो, न आपकी, न मेरी। 450 रुपये में ले जाओ।"

"रहने दो, नहीं चाहिए", यह कहते हुए अनामिका आगे बढ़ गई। तभी दुकानदार ने पीछे से आवाज लगाई, "अरे बात तो सुनो मैडम जी, नाराज क्यों होती हो? आप मेरी पुरानी ग्राहक हो। 400 रुपये में ले जाओ, पर किसी को बताना नहीं कि यह साड़ी आपने कितने रुपये में खरीदी है।"

"ठीक है भैया!" इस तरह अनामिका ने सौदा पक्का कर लिया। वैसे तो बाजार का हमेशा से ऐसा ही हाल रहा है, फिर चाहे वह इंदौर का राजवाड़ा बाजार हो, वाराणसी का गोदौलिया मार्केट या दिल्ली का चांदनी चौक। मोल-भाव कर ग्राहक मन ही मन यह सोचकर खुश हो जाते हैं कि उन्हें 500 की चीज 400 रुपये में मिल गई और दुकानदार यह सोचकर खुश है कि मुनाफा कम ही सही, पर बिक्री तो हुई। भारतीय समाज में खरीदारी करते हुए मोल-भाव करना मानो एक कला मानी जाती है। यह प्रक्रिया हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गई है। मोल-भाव खरीदारी की एक ऐसी कला है, जिसमें व्यक्ति अपनी कुशलता, धैर्य और चतुराई से किसी वस्तु का दाम कम कराता है। दिलचस्प बात यह है कि अधिकतर लोगों का मानना है कि मोल-भाव करने में पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक कुशल होती हैं।

■ महिलाओं की कुशलता

Diese Geschichte stammt aus der October 04, 2024-Ausgabe von Rupayan.

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