"गैसलाइटिंग से बचने का यही एक रास्ता है कि जब आप किसी के विचारों से एक्सपोज होते हैं, तो अपने विचारों की क्लियरिटी से, अपनी सोच से उसे फिल्टर कर लें।" - डॉ. समीर पारिख, सीनियर साइकोलॉजिस्ट
आज चौथा दिन है। मालती का सिर लगातार भन्ना रहा है, वह सोच नहीं पा रही है कि उसके साथ क्या गलत हो रहा है, क्या सही। पति उसकी हर बात को मानता है, लेकिन उससे अधिक अपनी बातें मनवाता है। धीरे-धीरे उसे लगने लगा है कि उसका वजूद बेमानी हो चुका है। उसकी सोचने-समझने की शक्ति चुक गयी है। पति जो कहता है, उसे आंख मूंद कर मानने को मालती मजबूर है। हालात ऐसे हो गए हैं कि पति दिन को रात कहे, तो वह बिना हील-हवाला किए मान लेगी कि हां, वाकई अभी रात ही है। देखा जाए, तो उसके दिमाग पर पति का कब्जा हो चुका है। उसे पता ही नहीं चला कि उसके पति ने अपने फायदे के लिए उसे इतना भ्रमित कर दिया है कि वह अपना भला सोच ही नहीं सकती। इसी को गैसलाइटिंग का नाम दिया गया है।
क्या है गैसलाइटिंग
गैसलाइटिंग टर्म का प्रयोग 1938 में ब्रिटिश लेखक हैमिल्टन के एक नाटक और बाद में 1944 में अमेरिकन साइको थ्रिलर फिल्म गैसलाइट में हुआ था। अब तो गैसलाइट नाम की एक फिल्म भी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज होने जा रही है। नाटक और फिल्म की कहानी यह थी कि पति घर की गैसलाइट को धीरे-धीरे कम करता है और जब पत्नी उससे कहती है कि कमरे में रोशनी कम क्यों हो रही है, तो पति उसे यकीन दिलाता है कि कमरा पूरी तरह से रोशन है, अंधेरा उसके मन का वहम है। पत्नी को लगने लगता है कि वाकई यह उसके मन का वहम है, रोशनी तो पूरी है। इतना ही नहीं, पति उसे यकीन दिला देता है कि उसे कोई दिमागी रोग हो गया है।
Diese Geschichte stammt aus der June 2023-Ausgabe von Vanitha Hindi.
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