पुराने जमाने में घर के बाहर गपबाजी के लिए चबूतरे और चौपाल हुआ करते थे, जहां दुनिया जहान की बातों, गली-मुहल्लों की खबरों के अलावा निंदा रस भी लिया जाता था। फिर आए चौपालों के डिजिटल अवतार यानी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म। यहां अच्छा-बुरा सब कुछ है। कुंठित-कुत्सित, हिंसक, कम्युनल, रेपिस्ट किस्म के लोग भी कई बार शराफत के चोगे धारण किए नजर आते हैं और मौका मिलते ही सांप की तरह डस लेते हैं। ज्यादातर ये लोग फेक आइडेंटिटी के साथ अकाउंट बनाते हैं, तो इनकी पहचान मुश्किल हो जाती है।
गले पड़ी आफत
सोचिए, अगर आपको किसी जगह अपनी ही तसवीर या वीडियो दिखे और आप सोच में पड़ जाएं कि अरे, ये दिखते तो हम ही हैं, लेकिन वास्तव में हैं नहीं तो दिमाग की स्थिति क्या होगी! बात सिर्फ अभिनेत्रियों की नहीं, नेता, पत्रकार, आम महिलाएं सब निशाने पर हैं। प्रधानमंत्री मोदी भी गरबा करते वायरल हुए अपने वीडियो को देख सोच में पड़ गए कि ये गरबा उन्होंने कब किया!
हम पहले ही सूचनाओं के ढेर में बैठे हैं, जहां दिमाग सही-गलत सूचनाओं को फिल्टर नहीं कर पाता। ऐसे में डीपफेक ना सिर्फ भ्रमित कर रहे हैं, बल्कि लोगों के मान-सम्मान को भी चोट पहुंचा रहे हैं। तमाम शोध और अध्ययन बताते हैं कि इंटरनेट का सर्वाधिक उपयोग पोर्नोग्राफी के लिए होता है। ऐसे में मोबाइल एप्लिकेशंस के जरिये आसानी से बनने वाले ये डीपफेक वीडियोज स्त्रियों के लिए तो बेहद खतरनाक हैं। गूगल सर्च इंजन में टाइप करने पर ऐसे सारे तरीके मिल जाते हैं, जिनसे टेक्नोलॉजी की बुनियादी समझ रखने वाला कोई जानकार महज 10 सेकेंड्स में डीपफेक तैयार कर सकता है। एक्सपर्ट्स आगाह कर रहे हैं कि सर्वसुलभ टेक्नोलॉजी और एआई का बढ़ता इस्तेमाल भविष्य में मुश्किलें खड़ी कर सकता है। यह भी एक कड़वा सच है कि इसका दुरुपयोग सबसे ज्यादा जुवेनाइल ही करेंगे।
कौन असली-कौन नकली
Diese Geschichte stammt aus der January 2024-Ausgabe von Vanitha Hindi.
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