समाज शास्त्र में इसे पुरुष व्यवहार से जोड़ कर देखा जाता है। मगर इन दिनों ऑफिस पीकॉकिंग की चर्चा हो रही है। कंपनियां ऑफिस को आकर्षक बना रही हैं, ताकि कर्मचारी ऑफिस आ कर काम करने के लिए प्रेरित हो सकें।
अकिता सॉफ्टवेअर डेवलपर हैं। उनके कैरिअर की शुरुआत कोविड-19 के दौर में हुई। जॉइन 'करने के एक-दो महीने के भीतर ही देश में लॉकडाउन घोषित हो गया। तीन वर्ष कंप्लीट वर्क फ्रॉम होम रहा और धीरे-धीरे यही उनका नॉर्मल वर्क रूटीन बन गया। पिछले वर्ष कंपनी ने वर्क फ्रॉम ऑफिस की बात छेड़ी तो अंकिता ने नौकरी बदल ली। यहां हफ्ते में एक दिन जाना होता है। अब इस ऑफिस में भी हाइब्रिड वर्क की बात हो रही है तो उनकी एंग्जाइटी बढ़ने लगी है । अंकिता की तरह ही कई युवा रिमोट या हाइब्रिड वर्क मॉडल चाहते हैं। अब कंपनियां उन्हें वापस ऑफिस बुलाने के लिए तमाम हथकंडे आजमा रही हैं।
क्या है पीकॉकिंग
समाज शास्त्र में पीकॉकिंग को खासतौर पर मेल बिहेवियर से जोड़ कर देखा जाता है, जिसमें कोई पुरुष स्त्रियों को लुभाने के लिए अपने हाव-भाव, स्वभाव, चलने-बोलने या काम करने का तरीका बदलता है। इसी तरह ऑफिस पीकॉकिंग में ऑफिस के रंग-रोगन, सिटिंग अरेंजमेंट या सुविधाओं को बढ़ाने की कोशिश की जाती है, ताकि वर्कर्स काम पर लौटने को प्रेरित हों।
पेनडेमिक ने वर्क कल्चर को बदल दिया है। युवा 5 डेज वर्क फ्रॉम ऑफिस के लिए तैयार नहीं हैं। आउल लैब्स (360 डिग्री वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग डिवाइस मीटिंग आउल बनाने वाली कंपनी) की हालिया रिपोर्ट कहती है कि एक तिहाई कर्मचारी वर्क फ्रॉम ऑफिस के बजाय नौकरी बदलना चाहेंगे। रिमोट या हाइब्रिड वर्क के लिए वे सैलरी या पर्क्स में कमी बर्दाश्त करने को तैयार हैं।
दफ्तर वह जो एंप्लाई मन भाए
Diese Geschichte stammt aus der November 2024-Ausgabe von Vanitha Hindi.
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