भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि मुख्य व्यवसाय है. देश में लगभग आधी आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर ही निर्भर है. यही वजह है कि देश के किसान पूरे साल अलगअलग फसलों की खेती करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जूनजुलाई का महीना किसानों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है. वह इसलिए, क्योंकि इस महीने में किसान अपनी खेती के लिए सब से अहम काम करते हैं.
जूनजुलाई में होती है मुख्य फसल की खेती
दरअसल, भारतीय फसल को मौसम के आधार पर 3 भागों में बांटा गया है. पहला खरीफ सीजन, दूसरा रबी सीजन और तीसरा जायद सीजन. खरीफ की खेती का मौसम मानसून के दौरान जून से ले कर अक्तूबर तक चलता है, वहीं रबी की खेती का मौसम नवंबर से ले कर अप्रैल तक चलता है.
ऐसे में अभी किसानों के लिए खरीफ का सीजन चल रहा है. खरीफ के सीजन में ही भारत की सब से मुख्य फसलों में से एक धान की खेती की जाती है.
किस फसल की कब रोपाई करें, इस को ले कर किसान चिंतित रहते हैं. यहां हम किसानों को उन फसलों के बारे में बताएंगे, जिन की इन महीनों में खेती कर आप लाखों रुपए का मुनाफा कमा सकते हैं. खरीफ की फसलों की बोआई की शुरुआत हो चुकी है.
इस बीच किसानों के जेहन में फसलों की बोआई को ले कर कई सारी चिंताएं सामने आती हैं. इन सब के अलावा इस बार किसानों को सिंचाई से ले कर जलवायु संकट तक से गुजरना पड़ सकता है. इस बीच सरकार इन सब स्थितियों को देखते हुए किसानों को अपने स्तर पर प्रयास करती हुई दिख रही है.
बोआई संबंधी काम
धान की सीधी बिजाई: इस विधि द्वारा पानी व श्रम की बचत होती है. सीधी बिजाई भूमिगत जल को रिचार्ज करने में भी सहायक सिद्ध होती है.
धान की सीधी बिजाई वाली फसल रोपाई कर के लगाई गई धान की फसल की तुलना में 7 से 10 दिन पहले पक कर तैयार हो जाती है. इस वजह से धान की पराली संभालने व कनक की बिजाई करने के लिए अधिक समय मिल पाता है.
Diese Geschichte stammt aus der July First 2022-Ausgabe von Farm and Food.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.