यह महीना खेती के लिहाज से काफी अहम है. उत्तर भारत में इस समय ठंड बढ़ जाती है. जिन किसानों ने गेहूं की अगेती किस्में बोई हैं और उन के खेत में खरपतवार गेहुंसा और जंगली जई उग आई हैं, ऐसी संकरी व चौड़ी पत्ती वाले दोनों खरपतवारों के नियंत्रण के लिए सल्फोसल्फ्यूरान 75 फीसदी व मेट सल्फ्यूरान मिथाइल 5 फीसदी डब्ल्यूजी की 40 ग्राम मात्रा को 600-800 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
समय से बोई गई गेहूं की फसल में शिखर जड़ विकास का समय होता है, इसलिए इस माह में बोआई के 21 दिन पूरे हो जाने पर फसल की सिंचाई से बिलकुल नहीं चूकना चाहिए, नहीं तो पैदावार में भारी गिरावट हो जाती है.
अगर गेहूं की बोआई के 30 दिन बाद नीचे की तीसरी या चौथी पत्तियों पर हलके पीले धब्बे, जो बाद में बड़े आकार के हो जाते हैं, दिखाई पड़ रहे हैं, तो यह जस्ते की कमी के लक्षण हैं. इस स्थिति में तुरंत 0.7 फीसदी जिंक सल्फेट व 2.7 फीसदी यूरिया का घोल बना कर 10 से 15 दिन के अंतर पर छिड़कें, वरना पैदावार कम होने के साथसाथ फसल पकने में 10-15 दिन की देरी हो जाती है.
जिन किसानों ने गेहूं की अभी तक बोआई नहीं की है, वह इस महीने के पहले पखवारे तक अवश्य पूरा कर लें. इस के लिए गेहूं की उन्नतशील पछेती किस्मों का चयन करें, वहीं गेहूं की पछेती किस्मों की बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 125 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है.
पछेती बोआई के लिए उन्नत किस्मों में सोनालिका, डब्ल्यूएस 291, एचडी 2285, सोनक, यूपी 2338, राज 3767, पीबीडब्ल्यू 373, पीबीडब्ल्यू 138 व टीएल 1210 शामिल हैं.
गेहूं को बोने के पहले कार्बोक्सिन 37.5 फीसदी व थीरम 37.5 फीसदी का मिश्रण 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा के अनुसार बीजोपचार करें.
देरी से गेहूं की बोआई करने वाले किसान बीज की बोआई जीरो टिलेज विधि से जीरो टिलेज मशीन से करें. इस से गेहूं की खेती में लागत में कमी आने के साथ ही उपज में वृद्धि होती है और उर्वरक का उचित प्रयोग संभव हो पाता है. साथ ही, पहली सिंचाई में पानी न लगने के कारण फसल बढ़वार में रुकावट की समस्या नहीं रहती है. इस के अलावा गेहूं में खरपतवार में कमी आती है.
Diese Geschichte stammt aus der December First 2022-Ausgabe von Farm and Food.
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