अमरूद का उत्पादन देश में सब से ज्यादा उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक व आंध्र प्रदेश में होता है. अमरूद की बागबानी सभी तरह की जमीन पर की जा सकती है. वैसे, गरम और सूखी जलवायु वाले इलाकों में गहरी बलुई दोमट मिट्टी इस के लिए ज्यादा अच्छी मानी जाती है.
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित ऐतिहासिक खुशरूबाग में बना 'औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र' अमरूद की न केवल पौध तैयार करता है, बल्कि वहां इच्छुक लोगों को अमरूद की बागबानी का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. वहां के इलाहाबाद सफेदा और सरदार अमरूद खासतौर पर मशहूर हैं. वहां अमरूद की एक और उन्नत किस्म ललित को भी तैयार किया गया है.
यह गुलाबी और केसरिया रंग लिए होता है. इस की पैदावार दूसरे अमरूदों के मुकाबले 24 फीसदी ज्यादा होती है. गुलाबी आभा, मुलायम बीज व अधिक मिठास वाले अमरूदों की पैदावार हर कोई वैज्ञानिक तरीके से कर सकता है.
पौधारोपण
अमरूद का पेड़ 2 साल बाद ही फल देना शुरू कर देता है. यदि शुरुआत में ही पेड़ की देखरेख अच्छी तरह से हो जाए, तो 30-40 सालों तक अच्छा उत्पादन मिल सकता है. देश में अमरूद के पौधे ज्यादातर बीजों के द्वारा तैयार किए जाते हैं, लेकिन माना जाता है कि इस से पेड़ों में भिन्नता आ जाती है. इसलिए अब वानस्पतिक विधि द्वारा पौधे तैयार किए जाने पर जोर दिया जा रहा है.
कलमी अमरूद के पौधे जुलाई, अगस्त व सितंबर महीने में पौध रोपण के लिए मुनासिब माने जाते हैं. सिंचित इलाकों में पौधरोपण फरवरी व मार्च के महीनों में भी किया जा सकता है. अमरूद के पौधों को 5x5 मीटर या 6x6 मीटर की दूरी पर लगाया जाना ज्यादा लाभकारी होता है. अमरूद के छोटे पेड़ों की सिंचाई अच्छी होनी चाहिए, जिस से कि जहां जड़ें हों, वहां की मिट्टी को नम रखा जा सके. पेड़ बड़े होने के बाद 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.
खाद व उर्वरक
पौधा लगाते समय प्रति गड्ढा तकरीबन 20 किलोग्राम गोबर की खाद डालनी चाहिए. इस के बाद आगे बताए अनुसार हर साल खाद डालनी चाहिए.
पहला साल : गोबर की खाद 15 किलोग्राम, यूरिया 250 ग्राम, सुपर फास्फेट 375 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 500 ग्राम डालें.
Diese Geschichte stammt aus der March First 2023-Ausgabe von Farm and Food.
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