पहाड़ों में तिमला को तिमुल, तिमलु, अंजीर, गूलर और बेडू को जंगली अंजीर के नाम से जाना जाता है. तिमला व बेडू का फल हरे रंग का और पकने के बाद तिमला भूरे, बैगनी, हलके लाल व हलके पीले रंग का होता है, जबकि बेडू का फल बैगनी रंग का होता है.
तिमला व बेडू का फल बीज सहित खाने योग्य होता है. इन फलों को कच्चा खाया जाता है और सब्जी के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है. तिमला का रायता बहुत लोकप्रिय है, तिमला के पत्तों का उपयोग पत्तल बनाने के लिए, जानवरों के चारे के लिए किया जाता है और इन का चारा दुधारू पशुओं के लिए अच्छा माना जाता है, क्योंकि इस से उन के दूध में वृद्धि होती है.
तिमला व बेडू के पेड़ों से सफेद रंग का दूध जैसा द्रव निकलता है और इन के दूध का उपयोग स्थानीय निवासियों द्वारा त्वचा में गहराई से फंसे कांटों को बाहर निकालने के लिए किया जाता है.
जैसा कि किसानों को विदित है कि तिमला यानी अंजीर और इस का रिश्तेदार बेडू, उत्तराखंड के हर क्षेत्र में अपनेआप उगने वाले फलदार पेड़ हैं. लोग इन के फलों को चाव से खाते हैं और इन की खासियत भी सब जानते हैं, लेकिन पर्वतीय क्षेत्र के किसानों द्वारा इन फलों की खेती नहीं की जाती, अपितु यह फलदार पौधे खुद ही उगते हैं. ये पेड़ जंगलों में बहुत कम पाए जाते हैं, लेकिन गांवों के आसपास, बंजर भूमि, खेतों व खेत की मेड़ पर उगते हैं.
पक्षी इस के बीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में सहयोग करते हैं. कई कीट और पक्षी इस के परागण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं.
बेडू : बेडू का पौधा उत्तराखंड के अलावा पंजाब, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और सूडान में पाया जाता है, विश्व में बेडू की तकरीबन 800 प्रजातियां पाई जाती हैं. बेडू मध्य हिमालयी क्षेत्र के जंगली फलों में से एक है. समुद्र तल से 1,500 मीटर ऊपर के स्थानों पर जंगली अंजीर के पौधे बहुत ही सामान्य होते हैं. गढ़वाल और कुमाऊं के क्षेत्रों में इन का उपयोग अधिकता से किया जाता है.
बेडू के फायदे, गुण और उपयोग : बेडू के पूरे पौधे का उपयोग किया जाता है. इस की छाल, जड़, पत्ते और फल औषधि के गुणों से भरपूर होते हैं.
Diese Geschichte stammt aus der August Second 2023-Ausgabe von Farm and Food.
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अगस्त महीने के खेती के काम
अगस्त के महीने में बरसाती मौसम का आखिरी दौर चल रहा होता है और देश के अनेक हिस्सों में धान की खेती बरसात के भरोसे ही की जाती है. बरसात के दिनों में फसल में कीट, रोगों व खरपतवारों का भी अधिक प्रकोप होता है, इसलिए समय रहते उन की रोकथाम भी जरूरी है.
बागबानी के लिए आम की विदेशी रंगीन किस्में
आम उत्पादन के मामले में भारत दुनियाभर में पहले स्थान पर है. इस की एक खास वजह यह है कि भारतीय आम अपने आ स्वाद, रंग, बनावट और गुणवत्ता के मामले में किसी को भी अपना मुरीद बना लेता है.
हेलदी की उन्नत खेती बढाए आमदनी
हलदी का प्रयोग न केवल मसाले के रूप में खाने के लिए होता है, बल्कि सौंदर्य प्रसाधनों और औषधियों के लिए भी होता है. हलदी को एक बेहतर एंटीबायोटिक माना गया है, जो शरीर में रोग से लड़ने की कूवत को बढ़ाने में मदद करता है.
पोपलर उगाएं ज्यादा कमाएं
पोपलर कम समय में तेजी से चढ़ने वाला पेड़ है. इस की अच्छी नस्लें तकरीबन 5 से पा 8 साल में तैयार हो जाती हैं. पोपलर की पौध एक साल में तकरीबन 3 से 5 मीटर तक ऊंची हो जाती है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के मैदानी इलाकों में इन को देखा जा सकता है.
टिंगरी मशरूम से बनाएं स्वादिष्ठ अचार
हमारे यहां की रसोई में अचार अपना एक अलग ही स्थान रखता है. यह हमारे भोजन को और भी लजीज व स्वादिष्ठ बनाता है. भारतीय रसोई में ह मशरूम भी अहम स्थान रखते हैं. मशरूम का अचार इसे और भी अधिक लजीज और रुचिकर बना देता है. इस का स्वाद और खुशबू हर किसी को मोहित कर देती है.
तालाबों में जल संरक्षण के साथ हों मखाने की खेती
दुनिया का 90 फीसदी मखाना भारत में होता है और अकेले बिहार में इस का उत्पादन 85 फीसदी से अधिक होता है. इस के अलावा देश के उत्तरपूर्वी इलाकों में भी इस की खेती आसानी से की जा सकती है. यहां पर जो तालाब हैं, उन में पानी भर कर मखाने की खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिस से किसानों को फायदा होगा. साथ ही, जल संरक्षण को भी बढ़ावा मिल सकेगा.
पालक की उन्नत खेती
पत्तेदार सब्जियों में सर्वाधिक खेती पालक की होती है. यह एक ऐसी फसल है, जो कम समय और कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है. पालक की बोआई एक बार करने के बाद उस की 5-6 बार कटाई संभव है. इस की फसल में कीट व बीमारियों का प्रकोप कम पाया जाता है.
कम खेती में कैसे करें अधिक कमाई
अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए किसानों को अपनी मानसिकता में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए बदलाव लाना होगा. खेती के अलावा किसानों को उद्यानिक फसलों की ओर भी ध्यान देना होगा.
खेत हो रहे बांझ इस का असल जिम्मेदार कौन?
अपने देश में पिछले 5 सालों में विभिन्न कारणों से किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं, पर आज हम न तो आंदोलनों की बात करेंगे और न ही किसी सरकार पर कोई आरोप लगाएंगे. हम यहां भारतीय खेती की वर्तमान दशा व दिशा का एक निष्पक्ष आकलन करने की कोशिश करेंगे.
बजट 2024 : किसानों के साथ एक बार फिर 'छलावा'
भारत की केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट 2024-25 खासतौर पर 2 माने में अभूतपूर्व रहा. पहला तो यह कि देश के इतिहास में पहली बार किसी वित्त मंत्री ने 7वीं बार बजट पेश किया है. हालांकि इस रिकौर्ड के बनने से देश का क्या भला होने वाला है, पर इकोनॉमी पर क्या प्रभाव पड़ना है, यह अभी भी शोधकर्ताओं के शोध का विषय है. दूसरा यह कि कृषि की वर्तमान आवश्यकता के मद्देनजर इस बजट में देश की खेती और किसानों के लिए ऐतिहासिक रूप से अपर्याप्त न्यूनतम राशि का प्रावधान किया गया है.