भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बस्ती जिले की वंचित और गरीब तबके की महिलाओं को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है, जिस में 10 से 15 महिलाएं जुड़ कर छोटीछोटी बचत कर के रोजगारपरक गतिविधियों से परिवार की माली हालत सुधारने में सहयोग कर रही हैं.
तकरीबन 2 साल पहले राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संचालित स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी इन महिलाओं को जानकारी मिली कि महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों पर जो पुष्टाहार महिलाओं और बच्चों को दिया जाता है, वह बड़ीबड़ी कारपोरेट कंपनियों के जरीए सप्लाई किया जाता है.
इस जानकारी के बाद इन महिलाओं ने जिले के 3 विकास खंडों के तकरीबन 300 स्वयं सहायता समूहों के साथ बैठक कर यह तय किया कि महिला एवं बाल विकास विभाग के उच्चाधिकारियों से संपर्क किया जाए और आपसी अंशदान से खुद की पुष्टाहार से फैक्टरी खोल कर विभाग को ही गुणवत्तायुक्त पुष्टाहार उपलब्ध कराया जाए.
यह बात सभी महिलाओं को जम गई और उन सभी ने सामूहिक रूप से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के ब्लौक और जिला स्तर के अधिकारियों को अपनी सोच बताई.
अधिकारी भी यही चाहते थे कि महिलाएं खुद से आत्मनिर्भर बनें. उन्होंने महिलाओं के प्रस्ताव को महिला एवं बाल विकास विभाग के उच्चाधिकारियों को साझा किया, तो उन को भी बात समझ में आ गई और उन्होंने इस प्रस्ताव पर चर्चा की, तो यह नतीजा निकला कि इस से महिलाओं को न केवल आमदनी होगी, बल्कि समय से आंगनबाड़ी केंद्रों पर गुणवत्तायुक्त पुष्टाहार की उपलब्धता भी सुनिश्चित हो पाएगी.
Diese Geschichte stammt aus der November Second 2023-Ausgabe von Farm and Food.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.