जलवायु परिवर्तन के दौर में काला नमक धान की खेती
Farm and Food|May First 2024
काला नमक धान काली भूसी और तेज खुशबू वाली धान की एक पारंपरिक किस्म है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के तराई वाले इलाकों के 11 जिलों और नेपाल में उगाई जाने वाली यह पारंपरिक किस्म वर्तमान में मौसम के उतारचढ़ाव और प्राकृतिक आपदा आदि के कारण कम उपज का कारण बनती है.
डा. सर्वेश बरनवाल, डा. प्रभास चंद्र सिंह, डा. मनोज कुमार पांडेय
जलवायु परिवर्तन के दौर में काला नमक धान की खेती

'एक जिला एक उत्पाद' यानी ओडीओपी में शामिल किए जाने और भौगोलिक सूचकांक यानी जीआई मिलने के बाद काला नमक धान सब से ज्यादा बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीर नगर, बलरामपुर, गोंडा जिलों में पैदा किया जाता है.

इस का इतिहास तकरीबन 2600 साल पुराना माना जाता है. काला नमक धान की खेती बुद्ध के समय में भी की जाती थी. कहा जाता है कि बुद्ध ने कपिलवस्तु की तराई में अपने शिष्यों को यह चावल सौंपा था और कहा था कि इस की खुशबू व क्वालिटी उन की याद दिलाएगी.

काला नमक धान की बात उठते ही मन में मुलायम और सुगंधित चावल के दाने का खयाल आने लगता है. ज्यादातर आम घरों में यह चावल किसी महत्त्वपूर्ण समारोह, शादीब्याह और दूसरे कार्यक्रमों जैसे अवसरों पर परोसा जाता है.

बाजार में काला नमक चावल को बेचना आसान नहीं है, क्योंकि यह अन्य चावल की किस्मों से अधिक महंगा है. इस बात को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा 'विश्व के विशिष्ट चावल' पुस्तक के भाग के रूप में भी प्रदर्शित किया जा चुका है.

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र के किसानों के लिए उन के द्वारा उगाई जाने वाली 3 मुख्य फसलों गेहूं, धान और गन्ने में से धान की फसल का विशेष महत्त्व है. यहां की उपजाऊ मिट्टी और बहती नदियों द्वारा जलोढ़ मिट्टी का जमाव, उपयुक्त नम जलवायु और बस्ती और आसपास के अन्य जिलों में प्राकृतिक जल स्त्रोतों की उपलब्धता इस क्षेत्र में धान की खेती के लिए प्रचुर परिस्थितियां बनाती है.

Diese Geschichte stammt aus der May First 2024-Ausgabe von Farm and Food.

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