खाद्य सुरक्षा पर पूरी दुनिया में चिंता है. कोविड-19 महामारी ने खाद्य सुरक्षा पर दोबारा नए सिरे से विचार करने का मौका दिया है. जहां संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डवलपमैंट गोल्स के अनुसार, एक ऐसी दुनिया का सपना देखा जाता है, जहां कोई गरीब न हो, जहां कोई भूखा न हो, वहीं इंटरगवर्नमैंटल पैनल औन क्लाइमेट चेंज के अनुसार, साल 2050 तक हमें उपज में 10-25 फीसदी तक की कमी देखने को मिल सकती है. इस का पूरी दुनिया की खाद्य उपलब्धता पर भारी असर पड़ेगा.
जलवायु परिवर्तन के कारण पशुधन के क्षेत्र में भी उत्पादकता, भोजन और चारे की उपज और मवेशियों की सेहत में गिरावट दर्ज होगी. पौधों और जंतुओं पर आधारित बीमारियों का फैलाव बढ़ जाने की भी संभावना होगी. किसानों की आय पर प्रभाव पड़ने से गरीबों के स्तर में भी वृद्धि हो सकती है.
संयुक्त राष्ट्र की संस्था 'फूड ऐंड एग्रीकल्चर और्गनाइजेशन' ने अनुमान लगाया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हमें तकरीबन 122 मिलियन लोग काफी गरीबी में देखने को मिल सकते हैं. भारत के आर्थिक सर्वे ने खेती की आय में कमी होने की बात को दोहराया है. ऐसी संभावनाओं के बीच स्मार्ट तकनीक से स्मार्ट खेती को एक आशा की किरण के रूप में देखा जा सकता है.
आज भारत में डिजिटल तकनीकी का प्रयोग काफी बढ़ रहा है. देश के बड़े व्यक्ति के साथ छोटे से छोटे व्यक्ति के हाथ में भी आप को मोबाइल दिखाई देगा. 50 करोड़ से ज्यादा ग्रामीण नौजवान गांवों में रोजगार की राह खोज रहे हैं.
यदि इन ग्रामीण नौजवानों को डिजिटल तकनीक का खेती में प्रयोग करने का प्रशिक्षण दिया जाए, तो इस से नौजवानों को एक नया रोजगार मिलेगा, वहीं दूसरी तरफ हमारी खेती की उत्पादन कूवत बढ़ेगी और किसान की अच्छी आमदनी भी सुनिश्चित होगी.
स्मार्ट खेती में उपग्रह आधारित विशिष्ट फसल प्रबंधन, वस्तुओं के इंटरनेट आधारित उपकरण जैसे सैंसर, रोबोट, ड्रोन आदि के प्रयोग से बेहतर खेती, उत्पादकता और आमदनी बढ़ाना, जलवायु परिवर्तन के अनुसार खेती, बेहतर उत्पादन के साथ फसलों में अंतर, क्षेत्र परिवर्तनशीलता को देखने, मापने और डाटा विश्लेषण के आधार पर अच्छे कृषि प्रबंधन को अपना कर स्मार्ट खेती की जा सकती है.
Diese Geschichte stammt aus der June First 2024-Ausgabe von Farm and Food.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.