परिणाम ताप संस्कार दुखेः र्गुणवृत्ति विरोधाच्च दुःखमेव सर्वं विवेकिनः ।2.15।।
Yoga and Total Health|November 2022
त्रार्थ - विवेक ज्ञान से सम्पन्न योगी के लिये (विषय सुख सू के भोग काल में भी) सभी दुःख रूप है क्योंकि उनमें परिवर्तन दुःख, ताप दुःख और संस्कार दुःख बना रहता है और तीनों गुणों (सत्व-रजस-तमस) के स्वभाव में भी निरन्तर विरोध होता रहता है।
प्रोमिल जैन सिक्वेरा
परिणाम ताप संस्कार दुखेः र्गुणवृत्ति विरोधाच्च दुःखमेव सर्वं विवेकिनः ।2.15।।

 व्याख्या - सवाल यह उठता है कि यह कैसे सम्भव है कि योगी सुख काल में भी दुःख देखता है व आनन्द प्राप्त नहीं करता ।

यहाँ सूत्र में बताया गया है कि एक विवेकी पुरुष के लिये विषय सुख इसलिये दुःख रूप है- क्योंकि वह उसमें परिणाम दुःख, ताप दुःख तथा संस्कार दुःख देख सकता है, साथ ही तीनों गुणों के स्वभाव में भी निरन्तर विरोध होते अनुभव कर सकता है।

भगवान बुद्ध भी यह देख सकते थे तभी उन्होंने कहा था-

• सर्वं दुःखम् दुःखम्

• सर्वं क्षिणिकम् क्षिणिकम्

• सर्वं स्व लक्षणम् स्व लक्षणम्

• सर्वं शून्यम् शून्यम्

अर्थात 

• सभी कुछ दुःख ही दुःख है- अप्रिय है

• सभी कुछ अस्थायी- अस्थायी है

• सभी कुछ अपने स्वभाव - अपने स्वभाव का है

• सभी कुछ शून्य - शून्य है

भगवान बुद्ध के 4 आर्य सत्य में पहला आर्य सत्य ही "इदम् दुःखम्" है - सर्वं दुःखम् यानि संसार दुःखों का भण्डार है । जीवन ही दुःखमय है

जन्म में दुःख, रोग में दुःख, बुढ़ापे में दुःख, मृत्यु में दुःख, नाश में दुःख, खोने में दुःख, बदलने में दुःख, अप्रिय के संयोग में दुःख, प्रिय के वियोग में दुख, इच्छाओं की पूर्ति न होने में दुःख, जहाँ संघर्ष है वहाँ दुःख है ।

भगवान बुद्ध यह भी कहते हैं कि दुःखियों ने जितने आँसू बहाए हैं उनका पानी महासागर के जल से अधिक है।

Diese Geschichte stammt aus der November 2022-Ausgabe von Yoga and Total Health.

Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.

Diese Geschichte stammt aus der November 2022-Ausgabe von Yoga and Total Health.

Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.