जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो सिर्फ कोरोना वायरस का डर था, लेकिन ये दौर खत्म होते ही एक और डर घर कर चुका है। ये डर है, इंटरनेट पर मौजूद गैरजरूरी और बच्चों पर गलत असर डालने वाली सामग्री का। पिछले दो सालों में इंटरनेट पर जो भी सामग्री मिली, बच्चों ने उसे अपना साथी बना लिया। पर, अफसोस की बात यह है कि कोरोना से जुड़ी स्थितियां सामान्य होने के बाद भी बच्चे फोन पर बेमतलब की सामग्री देखने की अपनी आदत को छोड़ नहीं पाए हैं। वो कंटेंट या सामग्री, जो उनकी उम्र के मुताबिक ठीक नहीं है। वो सामग्री, जो उन्हें वो बातें सिखाती हैं जो उन्हें नहीं सीखनी चाहिए। वो सामग्री, जो बच्चे के मन पर गहरा और गलत असर डाल रहा है। इन सबका सीधा असर बच्चे के व्यक्तित्व पर भी पड़ रहा है और उनके भविष्य पर भी मन लगाकर पढ़ाई करना वे भूल चुके हैं। दोस्तों के साथ वे खेलना भूल चुके हैं और तो और, परिवार के साथ वक्त बिताना भी अब उन्हें नहीं आता। बच्चे को स्मार्टफोन से दूर करना जरूरी है, लेकिन ये इतना आसान नहीं है। पेरेंट्स होने के नाते सिर्फ कह देने से बात नहीं बनेगी। आपको कुछ जरूरी कदम उठाने होंगे और परेशानी की गहराई तक जाना होगाः
बाहर ना जाओ
कोविड ने तो पिछले दो-तीन सालों में बच्चों के खेलने-कूदने पर असर डाला है, पर वैसे भी बच्चे का खेलना-कूदना घटा है। अभिभावक अपने बच्चे को लेकर ज्यादा संवेदनशील हो गए हैं। बच्चों की सुरक्षा को लेकर तमाम तरह के डर उनके मन में हावी हैं। इसका हल वो ये निकालते हैं कि बच्चे घर पर रहें, बाहर ना जाएं। बस, घर पर रहकर बच्चों के पास समय बिताने का जो विकल्प है, वो है फोन। फोन अपने साथ लाता है, गैरजरूरी कंटेंट। जिस पर फिर अभिभावक का नियंत्रण नहीं रह पाता।
रहे हैं तो मैं क्यों नहीं ?
फोन देखते हुए बच्चों के सामने ऐसा कंटेंट आता है, जो उन्हें नहीं देखना चाहिए तो उनके मन में अनकहा सा खयाल आता है। ये खयाल है कि दूसरे कर रहे हैं तो मैं क्यों नहीं ? अब जरूरत ये है कि बच्चे वो कंटेंट ना देखें, लेकिन पेरेंट्स की निगरानी के बिना उन्हें ऐसा कंटेंट ना देखने का कोई ठोस कारण नहीं मिल पाता है। फिर वो गलत आदतें सीखते हैं और जिंदगी में गलत करते चले जाते हैं।
आजमाते हैं चलो
Diese Geschichte stammt aus der January 21, 2023-Ausgabe von Anokhi.
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