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हकीकत गंदगी के पहाड़ों के नीचे
हमारी आबादी के बड़े हिस्से को गंदा रहने की आदत पड़ चुकी है. क्यों? क्योंकि मैला ढोना, साफसफाई रखना अति निचली जातियों का काम माना जाता था. ऐसे में सफाई न करना भारतीयों की संस्कृति बनी हुई है. ऐसी संस्कृति को तोड़ने की जरूरत है.
मंजिल से भी खूबसूरत सफर
मंजिल तो एक बिंदु होता है जहां पहुंचना होता है और जहां पहुंच कर खुशी का एहसास होता है, पर असल याद सफर बनाती है जो मंजिल तक पहुंचाती है. सफर ही है जो खट्टेमीठे अनुभव देता है.
अरबों की ठगी पिरामिड स्कीमें
लोग शौर्टकट तरीके से पैसा कमाना चाहते हैं और ठग इसी तरह के लोगों के इंतजार में रहते हैं. ठग कई शक्लों में सामने हैं. अरबों की ठगी करने वाले अब पिरामिड स्कीमें बेच कर पहले निवेशकों से निवेश कराते हैं, फिर जाल में फांसते हैं.
क्यों आते हैं दिन में सपने
दिन में सपने देखना आम बात है, इसे डेड्रीमिंग कहते हैं. ये कहीं भी कभी भी दिख सकते हैं. सवाल यह है कि हम इन्हें क्यों देखते हैं और इन का हमारे ऊपर क्या असर होता है? आइए जानते हैं.
आर्यन खान बरी चालू मीडिया पर आंच भी नहीं
आर्यन खान को नशीली दवाओं को रखने के आरोप में बरी कर दिया गया पर असली दोषी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो नहीं, वह चालू मीडिया है जिस ने बेगुनाहों को न्यूज रिपोर्टों से कुचल डाला और अब भी उन्हें रत्तीभर भी अफसोस नहीं है.
अमेरिका में बढ़ता गन कल्चर
अमेरिका वर्षों से हो रही मास शूटिंगों के बाद भी अपने गन कल्चर को खत्म नहीं कर पाया है. इस की 2 प्रमुख वजहें हैं. पहली, कई अमेरिकी राष्ट्रपति से ले कर वहां के राज्यों के गवर्नर तक इस कल्चर को बनाए रखने की वकालत करते रहे हैं. दूसरी, धर्म और चर्च का इन को मूक समर्थन रहता है.
मृत देह का अभाव
मैडिकल संस्थानों में मृत देह का अभाव होना विज्ञान व स्वास्थ्य उपचारों में नई खोजों पर अड़ंगा पड़ने जैसा है. मृत देह की कमी होने का मुख्य कारण लोगों का विज्ञान के लिए देह दान न करना है जो समाज में फैले धार्मिक अंधविश्वास से पैदा हो रहा है.
“हमें रिजैक्शन को हैंडल करना भी आना चाहिए” - सिमरिथी बठिजा
सिमरिथी बठिजा कला की धनी हैं. उन्होंने न सिर्फ मौडलिंग में खुद को साबित किया है बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर वे स्पोर्ट्स खेल चुकी हैं. फिलहाल उन्होंने अभिनय की तरफ रुख किया है. आइए जानते हैं उन के बारे में उन्हीं से.
सिमरिया मौब लिंचिंग हिंदू न मानने की सजा
गौमांस बहाना है. असल मकसद आदिवासियों को डराना है ताकि वे खुद को कट्टर हिंदू मानने लगें. कट्टर हिंदूवादियों की यह जिद और कोशिश आजादी के बाद से ही मुहिम की शक्ल में परवान चढ़ने लगी थी. इस बैर की कहानी महज दो लफ्जों की है कि आदिवासी हिंदू हैं या नहीं.
मेरे अपने
प्रकाश और फिर अविनाश दोनों के अंबिका को ठुकरा कर चले जाने से टूट कर रह गई वह मन में कोई इच्छा शेष न रह गई, पर उसे क्या पता उस की खुशियों में आग लगाने वाला कोई और नहीं उस के अपने ही थे.
ध्वस्त होती इमेज
देश की इमेज खराब होती है तब बड़ी परेशानी आम लोगों को भी होती है क्योंकि हकीकत होती कुछ और है और दिखाई कुछ और जाती है. इस से आम लोगों का आत्मविश्वास कम होता है जिस से उन की कार्यक्षमता पर बुरा असर पड़ता है. हर कोई चाहता है कि उस के देश का सिर दुनिया में ऊंचा हो, लेकिन झूठ, नफरत और हिंसा के चलते देश की छवि की भद पिट रही है.
धर्म की पोल खोलने पर मुकदमे
विडंबना है कि देश में अंधविश्वास फैलाने वालों को शासन, प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है और जो इन की दुकानों की पोल खोलते हैं उन के ही खिलाफ गैरकानूनी तौर पर गंभीर धाराएं लगा कर कैद किया जा रहा है.
बरबाद श्रीलंका
श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने राष्ट्रवाद की आंधी पैदा की, बहुसंख्यक समुदाय में उन्माद जगाया, अच्छे दिनों के सब्जबाग दिखाए और अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत को हवा दी. नतीजा बरबादी. आखिरकार वहां की जनता ने अपने देश के किंग को कुरसी से खींच कर जमीन पर दे पटका. मगर तब तक महिंदा राजपक्षे के परिवार ने देश का जो नुकसान कर दिया उस की भरपाई करने में देश को 10-15 साल लगेंगे.
क्या करे ससुर जब नई बहू घर आए
घर में नई बहू आती है तो शुरूशुरू में परिवार में एक असहजता दिखने लगती है. खासकर ससुर, जो पहले ठसक के रहता था, को संयमित रहना पड़ता है. इस नए बदलाव से उखड़े नहीं, ऐसा होता ही है, बल्कि सामंजस्य बैठाने की कोशिश करें.
एक औरत का भ्रष्ट हो जाना
कुछ दशकों के दौरान महिलाओं ने हर फील्ड में अपने पैर जमाए हैं. वे ऊंचे ओहदों पर भी पहुंचीं. इस से महिलाओं के प्रति समाज की सोच सकारात्मक तो हुई लेकिन हालफिलहाल में सामने आई भ्रष्टाचार में महिला अधिकारियों की लिप्तता आधी आबादी के वजूद के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है.
इकलौती लड़की बूढ़े मांबाप
जिस तरह बच्चों की देखभाल के लिए पेरेंट्स की भूमिका अहम होती है उसी तरह बुढ़ापे में संतानों की भूमिका अहम हो जाती है, पर क्या हो अगर संतान इकलौती लड़की हो और उस की शादी हो गई हो ?
अलजाइमर जरूरी है दिमागी कसरत
आमतौर पर अलजाइमर की समस्या बुढ़ापे में अधिक देखने को मिलती है पर आजकल 30 वर्ष की उम्र के बाद यह समस्या युवाओं में भी दिखने लगी है. ऐसा न हो, इसलिए दिमागी कसरत जरूरी है.
हे भगवान! है भगवान ?
कुछ अच्छा हुआ तो भगवान, कुछ बुरा हुआ तो भगवान कुछ हुआ तो भगवान, कुछ नहीं हुआ तो भगवान. आखिर भगवान हर मसले के बीच में कैसे घुस गया? हर सवाल का जवाब भगवान कैसे बन गया? भगवान सच है या मुफ्तखोरों की बनाई कोरी कल्पना है? क्या भगवान पर हमारा विश्वास करना सही है? यह सब जानने व समझने के लिए पढ़ें यह लेख.
सेहत की अनदेखी न करें महिलाएं
रोजमर्रा के जीवन में महिलाओं को कई प्रकार की हैल्थ समस्याओं से जूझना पड़ता है. पुरुष तो महिलाओं की समस्याओं को मानते ही नहीं और कुछ महिलाएं खुद भी टालमटोली या हिचकिचाहट के चलते चुप रहती हैं. ये समस्याएं अगर समय रहते ठीक न हों तो खतरनाक हो जाती हैं.
शादी में खिचखिच सही डायग्नोस जरूरी
शादी के बाद लड़के वालों की तरफ से लड़की पर रोकटोक तो पहले भी थीं पर बढ़ रही धर्म की राजनीति की वजह से घरों में लड़की को धार्मिक रीतिनीति में उलझाए रखना उस के पंख कुतरने जैसा साबित हो रहा है.
वो बांझ औरत
वर्तिका ने शिखा के बांझपन के चलते उसे मनहूस कहा, पर कोरोना महामारी की दूसरी लहर में एक ऐसी घटना घटी कि वही शिखा वर्तिका के बच्चों के लिए सबकुछ बन गई.
मंदिरमसजिद पर लाखों खर्च शिक्षा सरकार के भरोसे
जिस चीज से मनुष्य जाति का भला होने वाला है वह है एक मात्र शिक्षा व ज्ञान, जो स्कूलों में मिलता है, न कि मंदिर या मसजिद में शिक्षा के बुनियादी सवालों से भटक कर आज हम मंदिरमसजिदों के फुजूल झगड़ों में उलझ गए हैं. यह मूर्खता के अलावा कुछ नहीं.
विधवाओं पर आज भी बेड़ियां
पति की मौत के बाद एक विधवा स्त्री को हर वक्त यह प्रमाणित करते रहना पड़ता है कि पति के जाने के बाद भी वह पति को ही जपती रहेगी. उस के सिवा उस की जिंदगी का कोई महत्त्व नहीं है. आखिर विधवाओं को पति के नाम पर जिंदगीभर मातमपुरसी करते रहने की बाध्यता क्यों?
मां की जिम्मेदारी अनमोल
बच्चों, खासकर, बेटी के प्रति पेरेंट्स की खास जिम्मेदारियां होती हैं पर बेटियों पर जरूरत से ज्यादा रोकटोक ठीक नहीं. ऐसे में एक मां की अनमोल जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं, जिसे समझना जरूरी है.
भड़काऊ नैरेटिव की गुलामी
देश में भड़काऊ नैरेटिव हावी है ताकि सरकार सवालजवाब और जिम्मेदारियों से बच सके. धर्म और जाति अब मुख्य सवाल बना दिया गया है और रोजगार, महंगाई, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय जैसे मूल मुद्दे दरकिनार कर दिए गए हैं. भड़काऊ नैरेटिव मुसलिमविरोधी या जातिविरोधी नहीं, सिर्फ जनताविरोधी है.
बुरे दौर में भारतीय सिनेमा
आखिर क्या वजह है कि जो फिल्में समाज को आईना दिखाती थीं, अब वे अपने उद्देश्यों से भटक कर इंग्लिश माध्यम वालों के हाथों में पैसा कमाने का जरिया बन गई हैं...
तो यों होगा सफर सुहाना
जिंदगी एक सफर है सुहाना. जिंदगी के सफर को सुहाना बनाने के लिए अपनों के साथ लंबे सफर पर जाना जरूरी है. फैमिली में बच्चे हों तो सफर का मजा और भी बढ़ जाता है लेकिन साथ में जिम्मेदारी भी, इसलिए कुछ बातों का रखें ध्यान.
स्टंट है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता की बात करना आसान है, पर उसे बनाना और लागू करना दुष्कर है. एक महा देश जिस में हजारों जातियांउपजातियां बसती हैं और जिन के कट्टरपंथी धार्मिक दुकानदारों की अपनी चलती हो वहां सब को हांक कर एक से कानून के दायरे में ला बांधना भगवा सरकार का केवल स्टंट है. आज तक किसी ने इस का कोई प्रस्तावित कानून नहीं बनाया है क्योंकि यह करना आसान नहीं है.
शादी से पहले काउंसलिंग है जरूरी
शादी से पहले लड़कालड़की के बीच कई ऐसे मसले होते हैं जिन्हें सुलझाया जाना जरूरी होता है, वरना शादी के बाद वे दिक्कत खड़ी कर सकते हैं. ऐसे में मैरिज काउंसलिंग लेना एक अच्छा उपाय है.
बीआई बीमा छलावा भी हो सकता है
कारोबार की निरंतरता बनी रहे, इस के लिए विशेष सावधानियों की जरूरत होती है. लोग इस के लिए बीमा भी कराते हैं. हर बीमा फायदा दे, जरूरी नहीं, इसलिए बीमा कराते हुए उस के टर्म्स एंड कंडीशंस पर ध्यान देना जरूरी रहता है.