पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से 75 किलोमीटर दूर और बांग्लादेश की सीमा से 15 किलोमीटर पहले इस छोटे से छायादार गांव संदेशखाली की बसावट है. जहां पहुंचने के लिए नाव का सफर मुश्किल साबित होता है. लेकिन इसी साल 8 फरवरी को मछलियों के पोखरों वाले इस गांव से उपजा गुस्सा मैंग्रोव के जंगल और सुंदरवन की नम मिट्टी पार करता हुआ देशभर में पहुंच गया. महिलाओं के खिलाफ जघन्य और सिलसिलेवार अपराधों के आरोपों से गुस्साया यह गांव तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के टकराव की जमीन बन कर उभरा है. भाजपा की राज्य इकाई से लेकर पार्टी आलाकमान तक पूरी ताकत से टीएमसी के खिलाफ हमलावर हैं.
यह वही संदेशखाली है, जहां की महिलाओं ने 8 फरवरी के दिन हाथ में झाडू, डंडे और जूते लेकर एक बड़ा प्रदर्शन किया. उनकी मांग थी कि पुलिस प्रशासन उन्हें राज्य की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के तीन नेताओं शाहजहां शेख, शिबू प्रसाद हज़रा और उत्तम सरदार के आतंक से बचाए.
जल्द ही आंदोलनकारी महिलाओं की ओर से, जिनमें से ज्यादातर अनुसूचित जनजाति की हैं, लगातार यौन बदसलूकी और उत्पीड़न के अकथनीय आतंक, जमीन पर कब्जे और पुलिस के हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने के आरोपों का तांता लग गया. उन्होंने कहा कि हज़रा और सरदार ने महिलाओं का उनके घरवालों के सामने यौन उत्पीड़न किया. इन आरोपों में पीड़िता के तौर पर दर्ज एक महिला बताती हैं, "वे लोग हम लोगों को पार्टी ऑफिस में बुलाता था. हमारा भी हाथ पकड़कर खींचा था. हमारा साड़ी खोल दिया था."
महिलाओं ने कहा कि यह सब बरसों से चल रहा है और कभी किसी शिकायत की सुनवाई नहीं हुई. महिलाओं ने एक पीड़ित अध्यापक के बारे में बताते हुए हज़रा पर आरोप लगाया कि वह अध्यापक की पत्नी को अगवा करके ले गया था. पुलिस से शिकायत के बाद कोई कार्यवाही न होती देखकर उस अध्यापक ने गांव ही छोड़ दिया और आज भी लापता है. सभी महिलाओं ने एक सुर में कहा, "पुलिस ने हमारी शिकायतों को फाड़कर फेंक दिया और हमें कहा कि न्याय के लिए हम शिबू हज़रा या शाहजहां शेख़ से मिलें."
Diese Geschichte stammt aus der March 06, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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