धनौर गांव की गिनती मुजफ्फरपुर जिले के धनी गांवों में होती रही है. वहां न सिर्फ धान उगाने वाले किसान धनी होते थे, बल्कि बागमती के किनारे बसे मल्लाह भी नदी और गांव के तीन दर्जन से अधिक पोखरों से मछली पकड़कर अपनी बिरादरी में संपन्न माने जाते थे. उसी धनौर गांव में अपनी पुरानी-सी साइकिल के कैरियर पर देग लादे दिखे अभिनंदन सहनी. इस देग में उनके गांव के नदी-पोखरे की मछली नहीं है. ये आंध्र प्रदेश से आई मछलियां हैं. वे कहने लगते हैं, "तालाब सब का पनि सूख गया त मछली कहां से होगा ! नदी है, बागमती बहती है पीछे, लेकिन उसमें रीगा चीनी मिल वाला बीच-बीच में गंदा पानी छोड़ देता है, सब मछली मर जाता है. फिर नदी पर बांध जोजना भी लागू हो गया है (दस साल पहले तटबंध बन गए हैं). मजबूरी में बाप-दादा का पेशा छोड़कर बरफ वाला मछली बेचना पड़ रहा है."
नदियों-पोखरों वाले गांव होने के बावजूद आंध्र प्रदेश की मछलियों को बेचने की यह मजबूरी अकेले अभिनंदन की नहीं है. 700-800 घरों वाली धनौर गांव की मछुआरों की बस्ती में अब बमुश्किल सौ मछुआरे बचे हैं. बाकी परिवारों ने थक-हार कर यह पेशा छोड़ दिया. कुछ संपन्न लोग लीज पर जमीन लेकर खेती करते हैं. बाकी ने मजदूरी के लिए दिल्ली, पंजाब, बंगाल और असम का रास्ता पकड़ लिया है.
अभिनंदन के साथी अजय सहनी ने 15 दिन पहले राशन किराने की छोटी-सी गुमटी खोली है. वे कहते हैं, “सरकारी तालाबों पर मछली संघ वालों के झगड़े की वजह से रोक लग गया है और प्राइवेट तालाब का लीज इतना महंगा है कि हम लोग लागत तक नहीं निकाल पा रहे. क्या करते. घर चलाना था तो दुकान खोल लिए."
धनौर गांव जिस मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट के अंदर आता है, उसे निषादों की सीट माना जाता है. यहां पिछले 28 साल से अमूमन कैप्टन जयनारायण निषाद और उनके बेटे अजय निषाद का कब्जा रहा है. बीच में सिर्फ एक बार 2004 में जार्ज फर्नांडीस जीते थे. अजय निषाद पिछले दो चुनाव से यह सीट भाजपा के टिकट पर जीतते रहे. इस बार पार्टी ने उनका टिकट काट दिया तो वे कांग्रेस का टिकट लेकर मैदान में उतर आए. इधर भाजपा ने एक नए निषाद नेता राजभूषण चौधरी को मैदान में उतारा है.
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