इसकी शुरुआत 2013 में दुनिया को बदलने वाली एक भव्य योजना के रूप में हुई थी. यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप के पुनर्निर्माण में मदद करने वाली अमेरिका की मार्शल योजना से बड़ी और कहीं उदार होने जा रही थी. चीन दुनिया भर में सड़कें, रेलवे, पुल, हवाई अड्डे और बंदरगाह बनाने जा रहा था. हालांकि, दस साल बाद, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बीआरआइ को 'स्माल ऐंड ब्यूटीफुल' के रूप में फिर से पेश किया और कहा कि ऊर्जा और टेक्नोलॉजी जैसे छोटे और कम खर्चीले क्षेत्रों पर जोर दिया जाना चाहिए. अब यह तेजी से साफ होता जा रहा है कि शी की बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) न केवल उन देशों के लिए वित्तीय आपदा बन गई है, जिन्होंने चीन से कर्ज लिया और जिनको वे चुका नहीं सकते क्योंकि बीजिंग से पैसे का मतलब कर्ज है, सहायता नहीं. साथ ही यह पहल बीजिंग के लिए भी विपदा बन गई है.
कमजोर चीन भारत के लिए अच्छी खबर लग सकता है. लेकिन ध्यान रहे घरेलू और दूसरी समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए 2025 में चीन का व्यवहार कहीं ज्यादा अप्रत्याशित हो सकता है.
फॉरेन अफेयर्स पत्रिका ने अपने 17 दिसंबर के अंक में बताया कि यह ऐसे समय में हुआ है जब 2021 में प्रॉपर्टी सेक्टर के ढहने और 2022 में कोविड-संबंधी प्रतिबंधों की वजह से सभी प्रकार की आर्थिक गतिविधियों में बाधा उत्पन्न होने के बाद से चीन की वृद्धि में काफी कमी आई है. एक कमजोर और कम मुखर चीन भारत के लिए अच्छी खबर हो सकती है. लेकिन चूंकि बीजिंग घरेलू और अन्य समस्याओं से ध्यान हटाना चाहता है इसलिए 2025 में चीन का व्यवहार पहले की तुलना में कहीं ज्यादा अप्रत्याशित हो सकता है - इससे इस क्षेत्र और उससे पर भी अप्रत्याशित नतीजे हो सकते हैं.
इसमें कोई संदेह नहीं कि शायद एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत वाली बीआरआइ उन देशों में कोई महत्वपूर्ण सुधार करने में नाकाम रही है जो चीन की कथित उदारता से लाभान्वित होने जा रहे थे. परियोजना के लिए शुरुआती उत्साह ने टूटे वादों, टूटे हुए बांधों, कहीं न जाने वाली रेलवे - और गरीब देशों के चीन पर राजनैतिक रूप से निर्भर होने का रास्ता बना दिया है क्योंकि वे अपने कर्जों का भुगतान नहीं कर सकते.
Diese Geschichte stammt aus der January 15, 2025-Ausgabe von India Today Hindi.
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