यकीन कर पाना आसान नहीं, कुछ उम्रदार लोगों के लिए ही नहीं, दशक भर पहले बहुचर्चित निर्भया कांड की जिन्हें याद हो वे भी शायद दांतों तले उंगली दबा लें, बशर्ते उनमें हैरान होने के कुछ भाव जागृत हों। अव्वल तो यही विवेक को झकझोरने के लिए काफी है कि दुनिया जीतने वाली महिला पहलवानों को अपने और अन्य खिलाड़ियों के साथ भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष (अब पूर्व) तथा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद बृजभूषण सिंह के यौनाचार की शिकायतों पर कार्रवाई की मांग के लिए लगभग आधे वर्ष (अब तक) से सड़क की खाक छाननी पड़ रही है। हालांकि बृजभूषण सिंह इन शिकायतों का साजिश बता रहे हैं। पहलवानों की भी कई मौके पर संघर्ष की हिम्मत जवाब देती दिखती है। लेकिन सरकार और पुलिस समेत समूचे तंत्र का जो हाल है वह तो हर मानवीय गरिमा और लोकशाही को शर्मसार करने को काफी है। यहां तक कि कई लोगों की आंखें क्षुद्र राजनीति झांकने की कोशिश करती दिखती हैं। उनकी संवेदनाएं इसी तराजू पर तौली जाती और मुखर होती दिखती हैं। कई बार लगता है, जैसे गेब्रियल गार्सिया मार्केज के किसी औपन्यासिक जादुई यथार्थ का संसार उतर आया है। जैसे सब पर किसी जादू का मूठ चल गया है। खैर ! पहले नंगी आंखों से दिखने वाले कोरे यथार्थ पर नजर डाली जाए। यह जानना जरूरी है कि घटनाक्रम कैसे मोड़ ले रहा है।
इस साल जनवरी से गुहार लगा रहे पहलवानों की आखिर कथित तौर पर कुछ मध्यस्थ अचानक 3 जून की आधी रात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भेंट करवाते हैं। भेंट में क्या हुआ, उसका सिर्फ धुआं- धुआं-सा कयास बाहर आता है क्योंकि कोई मुख खुलता नहीं। अगले एक दिन बाद कयास सुर्खियां बनने लगती हैं कि संघर्षरत पहलवानों ने रेल में अपनी नौकरी ज्वाइन कर ली है और पीछे हट गई हैं। पहलवानों में साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया को ट्वीट करना पड़ता है कि नौकरी ज्वाइन करने का मतलब यह नहीं कि हम इंसाफ की मांग से पीछे हट गए हैं। विनेश लिखती हैं, "इंसाफ के आगे ऐसी नौकरी की क्या बिसात!" अगर समझ सकें तो यह उसी खेल का दोहराया जाना है, जो तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ लगभग सवा साल चले 2020-21 के किसान आंदोलन के दौरान हुआ था।
Diese Geschichte stammt aus der June 26, 2023-Ausgabe von Outlook Hindi.
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