राजनीति और रेल का नाता देश में जैसे गुत्थमगुत्था है । हर दौर में रेल नीतियों पर एक नजर डाल लीजिए तो उस दौर की राजनीति की खिड़कियां खुलने लगती हैं। यूं तो राजनीति से ही सब कुछ शक्ल लेता है, मगर भारतीय रेल एक विशिष्ट राजनीतिक परिघटना ऐन उसी वक्त से है जब इसकी नींव रखी गई। रेल राजनीति को देखने-समझने के लिए हम मोटे तौर पर इसे सात हिस्सों में बांटकर देख सकते हैं। अंग्रेजों का दौर, आजादी के आंदोलन में इसकी भूमिका, आजादी के बाद पहले दो दशकों में रेल नीति, इंदिरा गांधी का काल, जनता पार्टी का दौर, उदारीकरण का दौर और 2014 के बाद मोदी सरकार का दौर। कोई चाहे तो इसे और खांचों में बांट सकता है। यह भी है कि हर दौर और हर रेल मंत्री के काल में विविधता देखी जा सकती है। वजह यह भी है कि मंत्रालयों के बेहद केंद्रीकरण के एकाध दौर को छोड़ दें तो हर मंत्री अपने नजरिए से मंत्रालय को चलाता रहा है। आज के दौर में केंद्रीकरण ज्यादा है तो मंत्री का अपना नजरिया खास नहीं दिखता, जब तक उसे दिखाया न जाए। इन्हीं सवालों और नजरियों से यह स्पष्ट होगा कि रेल कैसे राजनीति के उलझाव में फंसी रही है और आज वह इस मुकाम पर कैसे पहुंची है।
Diese Geschichte stammt aus der June 26, 2023-Ausgabe von Outlook Hindi.
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