![होने का हल्कापन होने का हल्कापन](https://cdn.magzter.com/Outlook Hindi/1690249410/articles/_faXRhAIe1690274966323/1690277224767.jpg)
दुर्भाग्य से भारत इसका अपवाद नहीं है। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में औपचारिक सत्ताओं से मुक्ति एक ओर तो सर्वसत्तावाद का विस्तार दूसरी ओर, उस दौर की भयावह विडंबना थे। सर्वसत्तावाद में राजनीति लगभग धर्म का स्थान ले लेती है। वह धर्म को भी अपना पालतू बना लेती है और जीवन के हर क्षेत्र में दखल देने लगती है। तब निजी और सामाजिक, व्यक्ति और समाज आदि के द्वैत और दूरियां ध्वस्त हो जाती हैंएक तरह की एक्तान, एकरस, उबाऊ और थकाऊ सामुदायिकता सब कुछ पर छा जाती है। जिजीविषा के अनेक रूपाकार शिथिल और धूमिल पड़ जाते हैं। हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर जासूसी करने लगता है और सत्ता के लिए जासूसी लगभग अनिवार्य नैतिक कर्तव्य बनकर उभरती है। इस सबकी शिनाख्त करने वालों में अग्रणी रहे कथाकार और कथा-चिंतक मिलान कुन्देरा, जिनका परिपक्व आयु में पिछले दिनों देहावसान हुआ। उन्हें मध्य यूरोप का, जिसे पहले पूर्वी यूरोप भी कहा जाता था, उसकी ट्रैजेडी का शायद सबसे बड़ा गाथाकार कहा जाता है।
Diese Geschichte stammt aus der August 07, 2023-Ausgabe von Outlook Hindi.
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