अजीब मंजर है, जो आज तक आजाद भारत में शायद ही दिखा है। बात नाम पर आ जाए तो समझिए क्या बचा। कई बार तो लगता है कि होली की हुड़दंग मची हुई है। 28 पार्टियों के गठबंधन ने आइएनडीआ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव एलायंस) या 'इंडिया' नाम रख लिया तो जी20 का आमंत्रण 'राष्ट्रपति ऑफ भारत' की ओर से आया। संभव है, वजह यही न हो, लेकिन 'इंडिया' पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हमलावर रवैये और सोशल मीडिया में इंडिया को गुलामी का प्रतीक बताने की मुहिम ऐसा ही आभास देती लगती है। अलबत्ता, ऐसा सरकारी पत्र जारी होने के पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि भारत नाम का ही प्रयोग होना चाहिए। विपक्ष कयास लगा रहा है कि यह संविधान बदलने की पूर्व-पीठिका तैयार की जा रही है। तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल जैसे कई नेताओं ने प्रतिक्रिया में कहा कि विपक्षी गठबंधन अपना नाम भारत रख ले तो वे क्या करेंगे। यहां यह याद कर लेना मुनासिब होगा कि 1967, 1977, 1989 में विपक्षी पार्टियों का बड़ा गठजोड़ तीखी लड़ाई में सत्तापक्ष को चुनौती दे चुका है, लेकिन कभी राजनीति का स्तर देश के नाम पर नहीं आया था।
Diese Geschichte stammt aus der October 02, 2023-Ausgabe von Outlook Hindi.
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गांधी पर आरोपों के बहाने
गांधी की हत्या के 76 साल बाद भी जिस तरह उन पर गोली दागने का जुनून जारी है, उस वक्त में इस किताब की बहुत जरूरत है। कुछ लोगों के लिए गांधी कितने असहनीय हैं कि वे उनकी तस्वीर पर ही गोली दागते रहते हैं?
जिंदगी संजोने की अकथ कथा
पायल कपाड़िया की फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट परदे पर नुमाया एक संवेदनशील कविता
अश्विन की 'कैरम' बॉल
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जिसने प्रतिभाओं के बैराज खोल दिए
बेनेगल ने अंकुर के साथ समानांतर सिनेमा और शबाना, स्मिता पाटील, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, गिरीश कार्नाड, कुलभूषण खरबंदा और अनंतनाग जैसे कलाकारों और गोविंद निहलाणी जैसे फिल्मकारों की आमद हिंदी सिनेमा की परिभाषा और दुनिया ही बदल दी
सुविधा पचीसी
नई सदी के पहले 25 बरस में 25 नई चीजें, जिन्होंने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से बदल डाली
पहली चौथाई के अंधेरे
सांस्कृतिक रूप से ठहरे रूप से ठहरे हुए भारतीय समाज को ढाई दशक में राजनीति और पूंजी ने कैसे बदल डाला
लोकतंत्र में घटता लोक
कल्याणकारी राज्य के अधिकार केंद्रित राजनीति से होते हुए अब डिलिवरी या लाभार्थी राजनीति तक ढाई दशक का सियासी सफर
नई लीक के सूत्रधार
इतिहास मेरे काम का मूल्यांकन उदारता से करेगा। बतौर प्रधानमंत्री अपनी आखिरी सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस (3 जनवरी, 2014) में मनमोहन सिंह का वह एकदम शांत-सा जवाब बेहद मुखर था।
दो न्यायिक खानदानों की नजीर
खन्ना और चंद्रचूड़ खानदान के विरोधाभासी योगदान से फिसलनों और प्रतिबद्धताओं का अंदाजा
एमएसपी के लिए मौत से जंग
किसान नेता दल्लेवाल का आमरण अनशन जारी लेकिन केंद्र सरकार पर असर नहीं