बात 27 दिसंबर, 1987 की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य और ऑर्गनाइजर में विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंहल की तस्वीर के साथ एक खबर छपी। खबर में लिखा था कि रामभक्तों की जीत हुई और कांग्रेस शासन ने मंदिर निर्माण के लिए अपने अपने घुटने टेक दिए और इसके लिए ट्रस्ट बन गया है। खबर में इसे राम मंदिर आंदोलन की कामयाबी बताया गया था। उसी दिन दिल्ली में संघ के मुख्यालय केशव सदन, झंडेवालान में एक बैठक हुई जिसमें संघ प्रमुख बालासाहेब देवरस भी मौजूद थे। उन्होंने सबसे पहले अशोक सिंहल को तलब करके पूछा कि तुम इतने पुराने स्वयंसेवक हो, तुमने इस योजना का समर्थन कैसे कर दिया ? सिंहल ने जवाब दिया कि हमारा आंदोलन तो राम मंदिर के लिए ही था, यदि वह स्वीकार होता है तो स्वागत करना ही चाहिए। इस पर संघ प्रमुख उन पर बिफर गए। इस देश में राम के आठ सौ मंदिर हैं, एक और बन ही गया तो आठ सौ एकवां होगा लेकिन यह आंदोलन जनता के बीच लोकप्रिय हो रहा था जिसके बल पर हम दिल्ली में सरकार बना सकते थे। तुमने आंदोलन का ख्याल नहीं रखा है।
यह बात दिवंगत पत्रकार, जनमोर्चा के संस्थापक संपादक और बाबरी मस्जिद राम मंदिर विवाद समाधान के पक्षकार रहे शीतला सिंह ने अपनी किताब अयोध्या: राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद का सच में लिखी है। उनका दावा था कि यह बात उन्हें लक्ष्मीकान्त झुनझुनवाला ने बताई थी। अशोक सिंहल से देवरस ने कहा था कि राम मंदिर आंदोलन से महंत अवैद्यनाथ, जसिटस देवकीनंदन अग्रवाल और तमाम स्थानीय और बाहरी नेताओं को बाहर निकाल देना चाहिए क्योंकि मंदिर के निर्माण के प्रस्ताव का स्वागत उनके उद्देश्य की पूर्ति में बाधक होगा।
अब, जबकि राम मंदिर आंदोलन की पीठ पर सवार होकर भाजपा को दिल्ली की सत्ता में आए दस साल हो रहे हैं और मंदिर भी बनने वाला है, क्या यह कहा जा सकता है कि देवरस जिस उद्देश्य की बात कर रहे थे उसकी पूर्ति हो चुकी है? क्या राम मंदिर बनने के बाद भी इस मुद्दे में कुछ सियासी रस बाकी है?
Diese Geschichte stammt aus der February 05, 2024-Ausgabe von Outlook Hindi.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent ? Anmelden
Diese Geschichte stammt aus der February 05, 2024-Ausgabe von Outlook Hindi.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent? Anmelden
हमेशा गूंजेगी आवाज
लोककला के एक मजबूत स्तंभ का अवसान, अपनी आवाज में जिंदा रहेंगी शारदा
क्या है अमिताभ फिनामिना
एक फ्रांसिसी फिल्मकार की डॉक्यूमेंट्री बच्चन की सितारा बनने के सफर और उनके प्रति दीवानगी का खोलती है राज
'एक टीस-सी है, नया रोल इसलिए'
भारतीय महिला हॉकी की स्टार रानी रामपाल की 28 नंबर की जर्सी को हॉकी इंडिया ने सम्मान के तौर पर रिटायर कर दिया। अब वे गुरु की टोपी पहनने को तैयार हैं। 16 साल तक मैदान पर भारतीय हॉकी के उतार-चढ़ाव को करीब से देखने वाली 'हॉकी की रानी' अपने संन्यास की घोषणा के बाद अगली चुनौती को लेकर उत्सुक हैं।
सस्ती जान पर भारी पराली
पराली पर कसे फंदे, खाद न मिलने और लागत बेहिसाब बढ़ने से हरियाणा-पंजाब में किसान अपनी जान लेने पर मजबूर, हुक्मरान बेफिक्र, दोबारा दिल्ली कूच की तैयारी
विशेष दर्जे की आवाज
विधानसभा के पहले सत्र में विशेष दर्जे की बहाली का प्रस्ताव पास कर एनसी का वादा निभाने का दावा, मगर पीडीपी ने आधा-अधूरा बताया
महान बनाने की कीमत
नाल्ड ट्रम्प की जीत लोगों के अनिश्चय और राजनीतिक पहचान के आपस में नत्थी हो जाने का नतीजा
पश्चिम एशिया में क्या करेंगे ट्रम्प ?
ट्रम्प की जीत से नेतन्याहू को थोड़ी राहत मिली होगी, लेकिन फलस्तीन पर दोनों की योजनाएं अस्पष्ट
स्त्री-सम्मान पर उठे गहरे सवाल
ट्रम्प के चुनाव ने महिला अधिकारों पर पश्चिम की दावेदारी का खोखलापन उजागर कर दिया
जलवायु नीतियों का भविष्य
राष्ट्रपति के चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों के लिए जश्न का कारण हो सकती है लेकिन पर्यावरण पर काम करने वाले लोग इससे चिंतित हैं।
दोस्ती बनी रहे, धंधा भी
ट्रम्प अपने विदेश, रक्षा, वाणिज्य, न्याय, सुरक्षा का जिम्मा किसे सौंपते हैं, भारत के लिए यह अहम