समाज का ऋण चुकाना जरूरी है
Outlook Hindi|March 04, 2024
अपने कार्यकाल के दौरान अभयानंद ने बिहार में पुलिस महानिदेशक रहते हुए स्पीडी ट्रायल और फास्ट कोर्ट के माध्यम से रिकॉर्ड गिरफ्तारियों के साथ कई अपराधियों को सींखचों के भीतर किया है। शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका योगदान इससे कहीं भी कम नहीं है। उनके मार्गदर्शन में हजारों छात्र या तो पढ़ रहे हैं या आइआइटियन बन देश-विदेश में सम्मानजनक नौकरी कर रहे हैं। पटना विश्वविद्यालय के साइंस कॉलेज के स्वर्ण पदक विजेता छात्र रहे अभयानंद सुपर 30 के सह-संस्थापक हैं। स्नातक के बाद ही वह संघ लोक सेवा आयोग जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा में बैठे और पहली ही बार में बाजी मार ले गए। उन्होंने आइपीएस चुना और बिहार कैडर में अपनी सेवाएं देने लगे। पुलिस महानिदेशक के रूप में उनके काम को खूब सराहना मिली। अनबाउंड नाम से पुस्तक लिखने वाले अभयानंद अब शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। आउटलुक के लिए अभयानंद की यात्रा, शिक्षा के प्रति समर्पण पर संजय उपाध्याय ने उनसे लंबी बातचीत की।
संजय उपाध्याय
समाज का ऋण चुकाना जरूरी है

समाज के कई क्षेत्रों में आपका नाम रहा, सेवानिवृत्ति के बाद सरकार की ओर से कोई ऑफर नहीं मिला?

मैंने स्वीकार नहीं किया। उससे बेहतर शिक्षा के क्षेत्र में काम करना लगा। सरकार का कितना काम करें। समाज का भी तो ऋण है। उसे भी चुकाना है। मैं गणित-भौतिकी का छात्र था। सो, पढ़ाने लगा, उन बच्चों को जो आइआइटी जाना चाहते थे। इनमें कई हैं, जो पैसे न होने के कारण उड़ान ही नहीं भर सके। अभी हजारों बच्चे देश-विदेश में हैं। वे वहां बहुत अच्छा कर रहे हैं। उन्हें देख कर सुकून मिलता है। यही सब देख कर सुपर 30 की नींव रखी। मुस्लिम समुदाय से आने वाले बच्चों के लिए रहमानी शुरू किया।

सुपर थर्टी कैसे शुरू हुआ?

यह एक कॉन्सेप्ट है। शुरुआती दिनों में एक सिलेक्शन को आधार बना कर सुपर थर्टी शुरू किया था। यही हिट हो गया। मैं मुख्यतः फीजिक्स और मैथ्स पढ़ाता हूं। बच्चों को यही दोनों विषय कठिन भी लगते है। इन विषयों को पढ़ने के कुछ थम्ब रूल्स हैं। लेकिन हां, पढ़ना तो जम कर पड़ता ही है। थम्ब रूल भी तभी काम आता है, जब पढ़ाई मजबूत हो। खुशी होती है, जब बच्चा फर्श से अर्श पर पहुंच कर परिवार का नाम रोशन करता है। ऐसे हजारों बच्चे हैं। एक सेना खड़ी हो गई है ऐसे बच्चों की। हर बच्चा अपने आप में एक कहानी है।

सुपर थर्टी और रहमानी के साथ कोई और शैक्षिक संस्था जिससे आप संबद्ध हैं?

सुपर 100 है। इसमें 100 ऐसे बच्चे हैं, जो फीस देते हैं लेकिन नाममात्र। वहां मैं सिर्फ पढ़ाता ही हूं। सुपर 30 में करीब 20-25 बच्चे हैं। सुपर 30 के बच्चों के रहने-खाने-पढ़ने की व्यवस्था पूरी तरह निशुल्क है, लेकिन यहां पढ़ाई में ढिलाई की गुंजाइश नहीं है।

आप रोल मॉडल बन गए हैं। कई आइपीएस के प्रेरणास्रोत?

Diese Geschichte stammt aus der March 04, 2024-Ausgabe von Outlook Hindi.

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