केंद्रीय चुनाव आयोग ने 16 मार्च को जब लोकसभा चुनाव और चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की तारीखों का ऐलान किया, तो उसमें जम्मू-कश्मीर का जिक्र न होना बहुतों को अखर गया। इससे स्थानीय राजनीतिक दलों का उत्साह न केवल ठंडा पड़ गया, बल्कि राज्य के प्रति केंद्र की मंशा को लेकर उनके भीतर डर घर कर गया। चुनाव आयोग की घोषणा के तुरंत बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने टिप्पणी की, "पता नहीं ये लोग क्या चाहते हैं।" जम्मू और कश्मीर के राजनीतिक दलों को उम्मीद थी कि राज्य विधानसभा के चुनाव आम चुनावों के साथ ही घोषित कर दिए जाएंगे। यहां पिछला चुनाव 2014 में हुआ था। इस बार चुनाव की घोषणा न होने से यहां घोर निराशा और गुस्सा तो है ही, आम चुनावों को लेकर उदासीनता भी कायम है।
चुनाव आयोग की घोषणा के बाद श्रीनगर स्थित अपने आवास से बाहर आकर डॉ. अब्दुल्ला ने कहा, "यह हताशाजनक और उदास करने वाली बात है। भारत सरकार जिस 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की बात करती है, उस फॉर्मूले का इम्तहान जम्मू-कश्मीर में चुनाव साथ कराने से आसानी से हो सकता था।"
वैसे डॉ. अब्दुल्ला और अन्य 'एक राष्ट्र एक चुनाव' फॉर्मूले के समर्थक नहीं हैं, लेकिन यहां चुनावों में हो रही देरी के चलते राजनीतिक दलों को यह फॉर्मूला ठीक लग रहा है।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने जम्मू और कश्मीर में विधानसभा चुनाव न करवाने को लेकर जो दलील दी उसने स्थानीय राजनीतिक दलों और भड़का दिया। कुमार ने कहा कि उनके जम्मू और कश्मीर के दौरे के दौरान सभी राजनीतिक दलों ने लोकसभा चुनाव के साथ ही राज्य के चुनाव करवाने की मांग की थी, लेकिन समूची प्रशासनिक मशीनरी इस विचार के खिलाफ थी क्योंकि इसके लिए भारी संख्या में सुरक्षाबलों की तैनाती की जरूरत पड़ती, जो संभव नहीं था।
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