अठारहवीं लोकसभा का जनादेश वाकई ऐतिहासिक है। नरेंद्र मोदी के शब्दों में तो "पहली बार साठ साल में तीसरी बार सरकार कायम रहने का इतिहास बना", लेकिन वे भूल गए कि आजाद भारत में तीसरी बार किसी पार्टी को नहीं, गठबंधन को बहुमत मिला और उनके विशाल बहुमत पाने के लक्ष्य धराशायी हो गए। बड़ा इतिहास मायने में बना कि नब्बे के दशक के बाद गठबंधन सरकारों का दौर एक दशक के अंतराल के बाद फिर लौट आया। 2014 और 2019 की तरह किसी एक को बहुमत हासिल नहीं हुआ। इससे भी बड़ा इतिहास यह है कि यह जनादेश खारिज करने का ज्यादा है। पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की तरह तीसरी बार अपनी पार्टी को बहुमत दिलाने का मोदी का सपना भी खारिज हो गया। सबसे बढ़कर देश के बड़े हिस्से ने संविधान बदलने की आशंकाओं को खारिज किया।
खारिज करने यह सिलसिला अलग-अलग हिस्सों में दूसरी राजनैतिक पार्टियों के हिस्से भी आया, लेकिन उस किस्से से पहले यह देखना महत्वपूर्ण है कि नीतियों के मामले में इस जनादेश का खारिज अभियान कितना व्यापक है । जैसे, महामारी के आपदाकाल में आए तीन केंद्रीय कृषि कानून किसान आंदोलन की वजह से खारिज हुए थे, उसी दौर में आई सेना में अग्निवीर योजना को मौजूदा जनादेश खारिज करता दिखता है। गौरतलब है कि विपक्ष प्रचार के दौरान अग्निवीर योजना को कूड़ेदान के हवाले करने का वादा कर रहा था तो पंजाब में आखिरी चुनावी सभा में प्रधानमंत्री ने कहा था कि हम सेना को आधुनिक बनाना चाहते हैं और विरोध करने वालों की सात पीढ़ियों की करतूतें खोल कर रख दूंगा।
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