राजनीति जिस मोड़ से गुजरी है, खासकर उत्तर प्रदेश में, उसके बाद कई प्रश्न विचार के इंतजार में पंक्ति बनाकर खड़े हो गए हैं। इनमें से कई महामारी के शून्य में डूब गए थे। इतना गहरे कि फिर सतह पर नहीं आ सके। ऐसा ही एक प्रश्न था हिंदी में जगह पहले भी कम थी, इधर के राजनैतिक दौर में और घट गई। बहस का चलन एकाएक कमजोर पड़ गया। जरूर इसमें टेक्नोलॉजी का भी योगदान है। इंटरनेट से मिली सुविधाओं ने एक नए समाज को जन्म दिया, जो खुद को सोशल मीडिया कहता है और विचार-विमर्श का प्रतिनिधि माध्यम मानता है। अगर आप उसके प्रतिभागी नहीं हैं, तो वह आपको हाशियावासी मानने में संकोच नहीं करता। इस तर्क से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हाशिये पर हिंदी समाज के लाखों, करोड़ों लोग रहते हैं, जो कभी अखबारों और पत्रिकाओं की बहस के करीब आने लगे थे, अब दूर छिटक गए हैं।
Diese Geschichte stammt aus der July 22, 2024-Ausgabe von Outlook Hindi.
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लोककला के एक मजबूत स्तंभ का अवसान, अपनी आवाज में जिंदा रहेंगी शारदा
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'एक टीस-सी है, नया रोल इसलिए'
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विधानसभा के पहले सत्र में विशेष दर्जे की बहाली का प्रस्ताव पास कर एनसी का वादा निभाने का दावा, मगर पीडीपी ने आधा-अधूरा बताया
महान बनाने की कीमत
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दोस्ती बनी रहे, धंधा भी
ट्रम्प अपने विदेश, रक्षा, वाणिज्य, न्याय, सुरक्षा का जिम्मा किसे सौंपते हैं, भारत के लिए यह अहम